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________________ दफा ६०२ ] मर्दोका उत्तराधिकार ( ४ ) आखिरी मालिक के क़रज़े देनेके लिये । लेकिन अगर वह फ़रजे दुराचार यानी असद व्यवहार के लिये लिये गये हों तो उनके अदा करनेके लिये नहीं । यदि जायज़ क़रजे क़ानून मियादके बाहर भी हों या किसी दूसरे क़ानूनसे वे न दिलाये जा सकते हों तो इस बारे में कोई रुकावट नहीं पड़ेगी देखो -- चिम्मनजी बनाम दिनकर 1 Bom. 320; कन्डप्पा बनाम सव्वा 13 Mad. 119; 21 Cal. 190; कन्डा स्वामी बनाम राजगोपाल स्वामी 7 M. L. J. 363. ७० अगर आखिरी मालिककै करजोंके बारेमें उसकी जायदाद इन्सालबंट हो जाय तब किसी औरतको किसी क़र्जेके अदा करनेका अधिकार नहीं है, और अगर कोई धोखा देकर रुपया औरत से वसूल कर लेगा तो उसे वह रुपया लौटा देना पड़ेगा । २ - दानके लिये - विधवा, अपनी लड़की के विवाह कालमें लड़कीके पतिको, और लड़कीके द्विरागमनमें लड़कीको जायदाद मेंसे उचित हिस्सा दानदे सकती है । 'उचित' सेमतलब है कि -खानदानकी हैसियत, और स्थिति, और जायदादकी की हैसियत अनुसार होना चाहिये, किसीके हक़ मारनेकी गरज से नहीं । विवाह कालमें जायदाद देनेकी नज़ीर देखो राम बनाम बेंगी दुसामी 22 Mad. 113. द्विरागमन अर्थात् गवनेमें जायदाद देनेकी नजीर देखोचूड़ामणि बनाम गोपीशाह 37 Cal. 1. मि० घारपुरेके हिन्दूलॉ के अनुसार क़ानूनी ज़रूरतें यह भी मानी गयी हैं - (१) धार्मिक पूजाके लिये देव मन्दिर बनवाना, (२) तालाब आदि बनवाना ( ३ ) देव मूर्तिपर चढ़ाना और ब्राह्मणोंको दान देना मगर थोड़ा, देखो - घारपुरे हिन्दूलॉ दूसरा एडीशन पेज २५० नजीर देखो - जगजोबन बनाम देवशंकर 1 Bom. 394. ३ - भरण-पोषण यानी रोटी कपड़ेके लिये ( गुज़ारा ) - अपने खाने पीनेके लिये, और उनके खाने पीनेके लिये जिन्हें आखिरी मालिक देनेका पाबन्द था, देखो - सदाशिव बनाम धाकूबाई 5 Bom. 450, 460. आखिरी मालिक जिनको खाना पीना देनेके लिये पाबन्द था वह यह -मा, दादी, क्वारी लड़की, क्वारी बद्दन, आदि । हैं जैसे आखिरी मालिकपर लड़केकी विधवा, पोतेकी विधवा, परपोतेकी विधवा, आदिको खाना पीना देनेके लिये क़ानूनी पाबन्दी नहीं है किन्तु वह सदाचार और सद्व्यवहारके अनुसार पाबन्द है, अब देखिये आखिरी मालिक तो सदाचारसे पाबन्द है मगर जब उसके मरनेके बाद उसकी जायदाद दूसरे वारिस को चली जायगी तो वह वारिस जिसके पास जांगदाद है क़ानूनी पाबन्द हो
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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