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________________ ६८६ उत्तराधिकार [नवां प्रकरण दफा ५८७ सकुल्य किसे कहते हैं . धर्मशास्त्रोंमें सपिण्ड, सकुल्य, समानोदक, और बन्धु माने गये हैं । इन सबके दोंमें फरक है। सपिण्ड पहिले कहा गया है ( इस पुस्तककी दफा ५७० से ५८६ देखो) यहांपर सकुल्यका विषय कहते हैं। सपिएड सकुल्य समानोदक गोत्रज मिन्नगोत्रज (बन्धु) (१) नम्बर १ सपिण्ड है जिसका वर्णन इस किताबकी दफा ५७६ से ५८६ में देखो। (२) नम्बर २ गोत्रज सपिण्ड है इसका वर्णन देखो दफा ५८०. (३) नम्बर ३ भिन्न गोत्रज सपिण्ड है इसका वर्णन देखो दफा ५८०%; ५६०६३३६६३६ गोत्रज सपिण्ड उसे कहते हैं जो अपने गोत्रका न हो । ऐसा सम्बन्धी एक या अनेक स्त्री या स्त्रियोंके सम्बन्धसे पैदा होता है और जो सम्बन्धी किसी स्त्रीके सम्बन्धसे मिलता हो उसे बन्धुकहते हैं। (४) नम्बर ४ सकुल्य है इसका वर्णन देखो आगेके नकशेमें. (५) नम्बर ५ समानोदक है इसका वर्णन देखो दफा ५८८, ५८६. जहांपर तीन पीढ़ियोंका सपिण्ड समाप्त होता है वहाँसे लेकर और सातवीं पीढ़ीके सपिण्ड तक ऊपरकी शाखामें, इसी तरहपर नीचेकी शाखामें जहांपर तीन पीढ़ियोंका सपिण्ड समाप्त होता है वहांसे लेकर सात पीढ़ीके सपिण्ड तक और उनके सम्बन्धी जिनका दिया हुआ पिण्ड मालिकको अथवा मालिकके पूर्वपुरुषोंको जिन्हें मालिक दे सकता था नहीं दे सकते। सकुल्य ऐसे सपिण्डको कहते हैं जिसका दिया हुआ पिण्ड मालिकको या मालिकके बाप, दादा, परदादाको न पहुंचता हो। वह सब सकुल्य एक इसरेके हैं। जैसे भतीजेके बेटेका बेटा, परपोतेका बेटा, परदादाका बाप, और परदादाका भाई इत्यादि सकुल्य होते हैं। सकुल्यका रिश्ता कोई ज़रूरी रिश्ता नहीं माना गया है, इसीसे अनेक धर्म ग्रन्थोंमें इसका उल्लेख नहीं मिलता है । सपिएड और समानोदक तथा बन्धुका उल्लेख अधिकतासे मिलता है। यह बात तय नहीं मालूम होती कि सकुल्यका फैलाव कहां तक होना चाहिये, मगर पिण्डके रिश्तेसे हम सकुल्यका नक्शा नीचे देते हैं। सब मिल कर १५ सकुल्य होते हैं। नम्बर १६ तक सपिण्ड है और नम्बर १७ से ३१ तक सकुल्य दिखलाये गये हैं।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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