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________________ दफा ५८२-५८३] मौका उत्तराधिकार लिये सपिण्ड हैं कि वह दोनों मिल कर एक शरीर प्रारम्भ करते हैं। भाइयोंकी स्त्रियां भी आपसमें सपिण्ड हैं क्योंकि उनसे जो लड़के पैदा होते हैं वह अपने पूर्वजोंके शरीरके अंश रखते हैं। ___ अगर इसी तरहपर सिल सिला सपिण्डका माना जाय तो तमाम दुनिया एक न एकसे सम्बन्ध रखती हुई मिल जावेगी और सब लोग किसी न किसी तरहसे सपिडमें शामिल हो जायेंगे। इस लिये आचार्योने नियम कर दिया है कि पञ्चमात्सप्तमादृवं मातृतः मितृतस्तथा । मातृतो मातुः सन्ताने पञ्चमादूर्व, पितृतः सन्ताने सप्तमादृवं सापिण्ड्यं निवर्तत इति। याज्ञवल्क्ये ॥५३॥ सपिण्डता-माताकी तरफ पांचवीं और पिताकी तरफ सातवीं पीढ़ीमें निबत्त हो जाती है अर्थात् माके सम्बन्धसे पांचवीं पीढ़ीमें और बापकी तरफ बापके सम्बन्धसे सातवीं पीढ़ीमें सपिण्डता निवृत्त हो जाती है। आगेके सम्बन्धको सपिण्ड नहीं कह सकते । यही नियम माना गया है। इस वजहसे बापसे लेकर छः पूर्व पुरुष और लड़केसे लेकर छः उत्तर पुरुष और उस श्रादमीको जोड़ कर सात पीढ़ी शुमारकी जायंगी। सात पीढीकी गणना अपनेको मिला कर शुमार करना चाहिये अर्थात् वह खुद भी सात पीढीके अन्दर एक पीढ़ी है । एवं मातासे लेकर पांच पीढ़ी गिनना-देखो-घारपुरे हिन्दूलॉ पेज ३०६ और मेन हिन्दूलॉकी दफा ५१०. पूर्ण रुधिर सम्बन्धको अर्द्ध रुधिरपर श्रेष्टता मानी गयी है। नारायन धनाम इमरानी 91 I. C. 989; A. I. B. 1926 Nag 218. दफा ५८३ बापसे सातवीं मासे पांचवीं पीढ़ीके बाद सपिण्ड नहीं रहता यह बात प्रायः सभी प्राचार्योने मानी है कि बापकी तरफसे सातवीं पीढ़ी और माके तरफसे पांचवीं पीढ़ीके पश्चात् सपिण्ड नहीं रहता अर्थात् अपनेको लेकर बापकी शाखामें सातवीं पीढ़ीतक और इसी तरहपर अपनेको लेकर माकी शाखामें पांचवीं पीढ़ी तक सपिण्डतारहती है, पश्चात् नहीं रहती। सात पीढ़ी और पांच पीढ़ीके सपिण्ड देखो इस किताबकी दफा ५८४ और प्रमाण देखो दफा ५१.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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