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________________ ६५२ उत्तराधिकार [नवां प्रकरण بهره می بر بی بی بی من یه بی بی بی بی بی بی بی م ه ی ه दफा ५८२ सपिण्ड किसे कहते हैं जो एकही पिण्डमें शामिल होते हों वह सपिण्ड हैं। पिण्डका अर्थ शरीर है, जो एकही शरीरमें शामिल होते हों वे सपिण्ड हैं। यानी जिनके शरीरके अवयव (अंश) एक हों वह सपिण्ड हैं। ऐसे सपिण्डको पूर्णपिण्ड सपिण्ड कहते हैं । पूर्ण-पिण्ड, उपरकी तीन और नीचेकी तीन पूश्तोंमें होता है। इस तरहपर जिस आदमीसे गिनना शुरू करते हो उसे भी मिलादो तो सात पुश्त हो जायेगी। जैसे ऊपरकी तीन पुश्ते हैं पिता, पितामह, प्रपितामह ( बाप, दादा, परदादा) एवं नीचेकी तीन पुश्ते हैं पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र ( लड़का, पोता, परपोता ) इन छः में जब मालिकको मिलादो तो सात पुश्ते हो जाती हैं, इन सात पुश्तों में पूर्ण पिण्ड' होता है। क्योंकि मालिकसे शरीर सम्बन्धी अवयवोंके द्वारा सब एक दूसरेसे बंधे हुए हैं। मालिकके शरीरके अवयव पुत्र, पौत्र और प्रपौत्रमें मौजूद हैं तथा मालिकके शरीरमें उसके पिता, पितामह और प्रपितामहके शरीरके अवयव मौजूद हैं। इस लिये सब मिल कर शरीरके अवयव रूप बन्धन से एक 'पूर्णपिण्ड' बनता है। प्रपौत्रका पुत्र (परपोते का लड़का) तथा प्रपितामह का पिता (परदादा का चाप ) पूर्ण पिण्ड नहीं है। याज्ञवल्क्यकी टीका मिताक्षरामें विज्ञानेश्वरने सपिण्ड शब्दको श्राद्धके आधार पर प्रयोग नहीं किया, बक्लि अवयव सम्बन्ध परही प्रयोग किया है। क्योंकि उन्होंने विवाह सम्बन्धमें जो सपिण्डकी व्याख्या की है ( देखो दफा ४६ से ४८); उसमें श्राद्धकी कोई बात नहीं कही, पर रक्तका अथवा अवयवका सम्बन्ध कहा है, इसी आधार पर सपिण्ड बताया गया है । उस जगहपर सपिण्ड ऐसे अर्थमें शामिल है जहांपर पिण्डदानकी क्रिया हो ही नहीं सकती। तात्पर्य यह है कि उनका दिया हुआ पिण्ड शास्त्रानुसार उले पहुंच नहीं सकता। यह सपिण्ड मालिकसे सीधी लाइनका होता है मगर इनके अतिरिक्त और भी रिश्तेदार सपिण्ड होते हैं । उनका पूर्ण पिण्ड उनके अनुसार चलता है। विज्ञानेश्वरके कहने का तात्पर्य यह है कि सपिण्डका सम्बन्ध तब होता है जब दो आदमियोंके बीच में शरीरके अंगोंका सम्बन्ध एक दूसरेमें हो। शरीरके अंगोंके सम्बन्धसे जव सपिण्ड जोड़ा जायगा तो उसका फैलाव हो जाता है क्योंकि हर एक शरीरमें पिता और माताके अंगोंके अंश लड़केमें आते हैं । इसी सबबसे और ऊपर कहे हुए सिद्धांतके अनुसार वह कहते हैं, कि हर आदमी अपने बाप और माकी तरफ वाले पूर्वजों और चाचाओं मामाओं फूफियों तथा मौसियोंका सपिण्ड है। इसी तरहपर इन आदमियोंकी स्त्रियां और पति भी सपिण्ड हैं। अर्थात चाचा और चाची. मामा और मामी, फफा और फूफी, मौसा और मौसी सब सपिण्ड हैं। पति और पत्नी आपसमें इस
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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