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________________ ६७० rrrrrrrrrrrrrrrrrrrammar उत्तराधिकार [नवां प्रकरण rrrrrrrrrrwwwwww नोट-बम्बई और मदरास प्रान्तमें कुछ औरतें पूरे अधिकारके साथ जायदाद लेती है देखो दफा ६४०-६४१. दफा ५६७ वरासतका हक़ फौरन पहुंच जाता है ____एक हिन्दू मर्दके मरनेपर जो आदमी उसका नज़दीकी वारिस होता है उसकी छोड़ी हुई जायदादके पानेका फौरन हकदार हो जाता है। वारिसाना हक़ उसी वक्तसे मिल जाना शुमार किया जायगा जिस वक्तकि जायदादका मालिक मर गया हो । वारिसाना हक़ किसी सूरतमें भी, उससे ज्यादा नज़दीकी वारिसकी पैदाइशकी उम्मेदमें नहीं ठहर सकता। जहां कि ऐसी पैदाइशका होना मालिक जायदादके मरनेके समय अन्दाज़ नहीं किया जा सकता हो और जब एक दफा किसी हिन्दू आदमीकी जायदाद उसके मरनेपर उसके मजदीकी वारिसको मिल गयी तो फिर वह उससे नहीं लौट सकती, मगर शर्त यह है कि जब कोई उससे नज़दीकी वारिस जिसका अन्दाज़ मालिक जायदादके मरनेके समय किया जा सकता था पैदा हो जाय, अथवा मरे हुये उस आदमीके लिये अगर कोई लड़का गोद ले लिया जाय तो फिर जायदाद लौटकर इन आखीरमें कहे हुये वारिसोंको मिल जायगी देखो-नीलकमल बनाम जोतेन्द्रो (1881) 7 Cal. 178, 183. कालिदास बनाम कृष्ण 2Beng. L. R. F. B. 103; नृपसिंह बनाम वीरभद्र (1893) 17 Mad. 287. गोवर्द्धनदास बनाम बाई रामकुंवर (1902) 26 Bom. 449, 467. उदाहरण-ललित,अपना एक जन्मका अन्धाबेटा,और एक भतीजा छोड़ कर मरगया। लड़का अन्धा होनेकी वजहसे हिन्दूलॉके अनुसार उत्तराधिकार को प्राप्त नहीं होता। इसलिये ललितकी सब जायदाद उसके भतीजेको मिली। अन्धे बेटेने ब्याह किया और उसके एक लड़का 'अमृत' पैदा हुआ। भतीजे से अमृत, ललितका नज़दीकी वारिस है, इसलिये कि ललितका अमृत पोता है। अमृत भतीजेसे जायदाद वापिस मांगता है मगर वह जायदादके पाने का हक़दार नहीं है क्योंकि ललितके मरतेही उसकी जायदाद भतीजेको उत्तराधिकारके अनुसार प्राप्त होगयी थी। ऐसी सूरतमें दो बातें पैदा होती हैं पहिली यहकि अगर ललितके मरनेके समय अमृतकी पैदाइशका अनुमान किया जा सकता था तो जायदाद भतीजे से वापिस मिलेगी, दूसरे यह कि अगर ऐसा अनुमान उस वक्त नहीं किया जा सकता था तो नहीं मिलेगी। भावी वारिसके हकमें वरासतका ठीक वक्तले पहिले पहुंचना तब तक नाजायज़ है, जब तककि बिधवाका समस्त रियासतसे पूर्ण अधिकार न उठ जाय-मु० भगवतीबाई बनाम दादू खुशीराम A. I. R. 1925 Nag. 95. दफा ५६८ बेटा, पोता, परपोताका इकट्ठा हक़दार होना - एक बेटा और एक पोता जिसका बाप मर गया है, और एक परपोता जिसका कि बाप और दादा दोनों मर गये हैं, यह सब मिलकर अपनी पैतृक
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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