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________________ ६३४ बटवारा [आठवां प्रकरण पशु, या घरका कोई साज सामान और इसी प्रकारकी अन्य जायदाद जो स्वभावतः टुकड़े करके नहीं बांटी जा सकती, किसी एक कोपार्सनर को उसके हिस्से में दी जा सकती है और उसके बराबर दसरे प्रकारकी कोई जायदाद उसके हिस्से में कम करके दूसरे कोपार्सनरों में बांटी जा सकती है या नकद रुपया ले, देकर यह हिसाब बराबर किया जा सकता है। परन्तु यदि ऐसी कोई जायदाद इस तरह की हो कि एकही कोपार्सनर को उसे देदेना उचित न हो जैसे सड़क, कुंवा. पुल, तालाब आदिः तब ऐसी सूरतमें यह ज़रूरी होगा कि उतनी जायदाद मुश्तरका बनी रहे, देखो-गोबिन्द अन्नाजी बोधनी बनाम त्र्यंबक गोबिन्द धानेश्वर (1910 ) 12 Bom. L. R. 363, कई सूरतोंमें यह ज़रूरी होगा कि जायदाद बेंचकर उसका मूल्य बांटा आय, देखो-Act. No 4 of 1893 S. 2. देवस्थान-देवस्थान आदि पूजा के स्थान, और ऐसी जायदाद जो किसी देवमूर्ति या अन्य प्रकारके धर्म कार्यके लिये अलहदा कर दी गयी हो टुकड़े करके बांटी नहीं जा सकती, देखो--आनन्दमयी चौधरानी बनाम बैकुण्ठनाथराय 8 W.R.C.R.193; गौतम इन्सूटीटिव्शन 28--46 सेक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट Vol. II P. 306; राजेन्द्रदत्त बनाम श्यामचन्द्र मित्र 6 Cal. 106; और देखो-भट्टाचार्यका लॉ श्राफ ज्वाइन्ट हिन्दू फेमली P.450-451. पारवारिक मूर्तिका बटवारा नहीं हो सकता--अधिकारियों द्वारा बारी बारीसे प्रार्थना करना होगा, इसका उपाय यही है । प्रमथनाथ मलिक बनाम प्रद्युम्न कुमार मलिक 3 Put. L. R. 315; A. I. R. 1925 P. C. 139. खान्दानी मूर्ति--मूर्ति पूजनके अधिकारका बटवारा नहीं हो सकता। इस प्रकारके अधिकारके हिस्सेदारोंको बारी बारीसे पूजन करने का अधिकार है। प्रमथनाथ बनाम प्रद्युम्न कुमार 52 1. A. 245; 23 A. L. J. 537; 41 C. L.J.551; 87 I.C.3053 22 L. W. 4925 ( 1925 ) M. W. N. 431:20. W. N. 557:27 B. L. R. 1064; 62 Cal. 809:30C. W. N. 25; A. I. R. 1925 P. C. 139; 49 M. L.J. 30 ( P. C.) जब किसी जायदादपर किसी धर्म खातेके खर्चका बोझ पड़ा हो वह जायदाद बांटी जा सकती है परन्तु उस खर्चका बोझ जायदादके हिस्सोंके अनुसार बना रहेगा 8M. I. A.66. जो जायदाद किसी खास काममें आया करती हो जैसे पूजाका दालान, यज्ञ की वेदी, कुल देवताकी जगह, बटवारेसे बंचित नहीं रह सकती परन्तु यदि अदालत सव हालतोंका विचार करके यह ख्याल करे कि उस जायदादको किसी एक हिस्लेदारोंको देदेना उचित होगा तो वह उसे देदेगी और उसका मूल्य उस हिस्सेदारसे लेलेगी जो उसके हिस्सेसे ज्यादा है 3 Cal. 514; देवस्थान के बारेमें इस किताबका प्रकरण १७ देखिये।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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