SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 714
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ५२७ ] बटवारेकी जायदाद - उदक--कुंवा, बावड़ी, तालाब आदि, यदि हिस्सेदारोंकी संख्याके अनुसार उनके हिस्सोंमें बराबर बांटे न जा सकते हों तो उनकी बिक्री करके कीमत बांटना उचित नहीं है । ऐसा प्रबन्ध कर देना चाहिये कि उन्हें सब हिस्सेदार किसी क्रमसे भोग सकें। स्त्री--दासी, बापके पासकी रखेली औरत, आज कल यह रवाज नहीं रहा । मदरास प्रांतमें देवदासियां मन्दिरोंमें होती हैं। मगर उनका बटवारा नहीं हो सकता है। _ योगक्षेम--'योगक्षेम' शब्द दो शब्दोंके योगसे बना है 'योग' और 'क्षेम' । मिताक्षराने इन दोनों शब्दोंका अर्थ अलग अलग किया है, देखोयोग-योगशब्देनालब्धलाभकारणं श्रौतस्माताग्निसाध्य मिष्टं कर्म लक्ष्यतेक्षेम-क्षेमशब्देन लब्धपरिरक्षणहेतुभूतं बहिर्वेदिदानतडागा रामनिर्माणादि पूर्त कर्म लक्ष्यते-मिताक्षरा ___ 'योग' शब्दका मतलब यह है कि अलभ्य वस्तुके लाभका जो कारण श्रौत, स्मार्त अग्निमें जो होनेवाला यज्ञरूपकर्म। श्रीर 'क्षम' शब्दका अर्थ यह है कि प्राप्त हुएकी रक्षाका जो कारण जैसे वेदीके बाहरका दान, तालाब, या बाग आदि लगवाने के कामका पूरा करना। अर्थात् जो धन या जायदाद यज्ञ आदि व तालाब, कुंवा, बारा श्रादिके निर्माण करनेके मतलबले या मज़हबी कामके किसी मतलबसे (जैसे देवमन्दिर आदि) अलग करदी गयी हो या सिर्फ नाम ज़द करदी गयी हो या संकल्प करदी गयी हो उस धन या जायदादके हिस्से होना नहीं चाहिये 'तथा हिस्सेदारों में वह धन या जायदाद तकसीम नहीं होगी। माना गया है कि ऐसे किसी कामके लिये जो सम्पत्ति निकाल दी जाती है वह वास्तवमें पब्लिक की होजाती है और उससे सर्व साधारणको लाभ पहुंच सकता है चाहे वह संपत्ति किसी एकही आदमीके पास रहे ।मगर वह जैरातकी सम्पत्ति मानी जायगी। प्रचार-मकान, खेत, बाग, या मन्दिरका रास्ता, या रास्ता-मिता. क्षराने इनको विभागके अयोग बताया है मगर अब उसका मतलब यह लगाया जाता है कि अगर किसी तरहसे सम्भव हो सके तो विभाग कर दिया जाय और अगर असम्भव हो तो ऐसा प्रबन्धकर दिया जाय कि जिसमें सब हिस्सेदारोंके लाभमें नुकसान न पड़ता हो या किसी एकको देकर उसकी कीमत सबको दिला दी जाय । सबका सारांश हिन्दूलॉ में यह माना गया है कि 80
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy