SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 709
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६२८ बटवारा [ आठव प्रकरण व्याधितः कुपितचैव विषयासक्त मानसः अन्यथा शास्त्रकारीच न विभागो पिता प्रभुः । नारद रोग ग्रस्त होने से, या क्रोधसे या किसी मतलब या दुर्व्यसनसे या शास्त्रको न जाननेवाला बाप मौरूसी जायदाद बांटनेका अधिकारी नहीं है । प्रायः यह बात मानी जाती है । बड़े भाईको ज्यादा हिस्सा देना- जबकि एक सम्मिलित हिन्दू कुटुम्ब के बटवारे में पाच ( सालिस) ने बड़े भाईको और भाइयोंकी अपेक्षा कुछ हिस्सा अधिक इसलिये दे दिया कि उसने बहुत समय तक अपने भाइयोंकी देख भाल और परवरिशकी और उन्हें पढ़ा लिखाकर अच्छे अच्छे ओहदोंके योग्य बना दिया, और जब यह कहा गया कि यह बटवारा नाजायज़ है और पञ्चका फैसला खिलाफ क़ानून है । तय हुआ कि पञ्चका फैसला क़ानूनके खिलाफ नहीं है क्योंकि ये 'ज्येष्ठ भाग' के तौरपर नहीं दिया गया था, देखो78 I. C. 238; 1925 All. I. R. 301 (Pat ) यदि संयुक्त परिवार के सदस्य इस बातपर रजामन्द हों कि अमुक जायदादका अमुक हिस्सा वे आपसमें ले लेंगे, तो यह आवश्यक नहीं है कि उनकी बराबर नाप जोख ही की जाय । यदि बटवारा स्वयं स्पष्ट है तो बादके इस प्रबन्धका कोई महत्व नहीं है । हां यदि इस प्रकारके प्रबन्धके प्रतिकूल कोई शहादत हो, तो उससे यह साबित होगा कि इस प्रकारका कोई प्रबन्ध यानी बटवारा नहीं हुआ - सदाशिव पिल्ले बनाम शानमुगम पिल्ले A. I. R. 1927 Mad. 126. पिता और पुत्रके मध्य बटवार --पिता और पुत्र के मध्य बटवारेमें पुत्र के पुत्रको यदि वह नाबालिग हो और अपने पिता के साथही रहता हो, तो अलग हिस्सा न दिया जायगा -राधेकिशनलाल बनाम हरकिशनलाल A. I R. 1927 Nag. 55. दफा ५२३ बटवारे के पहिले अपना हिस्सा रहन करना मुश्तरका जायदादके किसी खास हिस्सेको कोई कोपार्सनर दूसरे को पार्सरके पास रेहन करदे और पीछे बटवारा होनेके समय वह खास हिस्सा ( जो रेहन किया गया था ) दूसरे कोपार्सनर के हिस्सेमें चला जाय तो वह आदमी जिसके पास वह खास हिस्सा रेहन रखा गया था, केवल उस जायदादपर दावा कर सकता है जो रेहन करने वाले कोपार्सनरके हिस्सेमें आई हो । मगर शर्त यह है बटवारा अनुचित रीतिसे न किया गया हो और कोई • जाल फरेब भी न हो, देखो - मथिया बनाम अष्पाला (1910) 34 Mad.1752
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy