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________________ ५६ पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़ज़ा [सातवां प्रकरण 1871 Civil; No. 77 of 1876 Civil; No. 98 of 1879 Civil; No. 78 of 1879 Civil; 87 P. B. 1881; 93 P. R. 1883; 152 P. R. 1888. (८) बापने अपनी और अपने नाबालिग्न पुत्रोंकी तरफ़से जिनकाकि वह वली था मुश्तरका जायदादकी किसी ज़मीनकी ज़मानतपर चौदह वर्षकी लिखत करदी, इसकी रजिस्टरी नहीं हुई थी, माना गया कि खान्दानके लाभ के लिये ऐसी लिखत जायज़ मानी जायगी, देखो-5 Indian Cases 762; 7 M. L. T. 92. () मुश्तरका खान्दानके बापको जब कोई रुपया किसी दूसरे श्रादमीके देनेके लिये मिला हो और वह उसे खर्च कर डाले, और उसने यह रुपया खान्दान वालोंके लाभके लिये खर्च किया हो जिस खान्दानमें बाप मेनेजरकी हैसियत रखता था तो यही माना जा सकेगा कि बापने दीवानी कानून के अनुसार विश्वासघात किया मगर फौजदारी कानूनके अनुसार नहीं, इस. लिये साथ रहने वाले उसके पुत्र ऐसे रुपयेके अदा करनेके जिम्मेदार हैं, पुत्रों के हिस्सेकी जायदाद जिम्मेदार होगी, देखो-31 Mad. 161; 17 M. L. J. 613; 3 M. L. T. 353; 31 Mad. 472. (१०) जो क़र्जा बापने लिया हो उसकी जिम्मेदारी पुत्रोंपर है क्योंकि बाप पुत्रोंका एजेन्ट है पुत्रोंकी जिम्मेदारी उसी वक्त पैदा हो जाती है जबकि बापपर वह पैदा होती है और अगर बाप पीछे से कोई रकम बुरे इरादेसे अनुचित खर्च करदे चाहे वह ऐसा करनेसे फौजदारी कानूनसे अपराधीकी हैसियतसे जिम्मेदार होगया हो तो भी पुत्र उसके देनेके पाबन्द हैं, देखो19 M. L. J. 759. (११) मिताक्षराला के अनुसार पुत्र ऐसी डिकरीके पाबन्द माने गये हैं जो उनके बाप पर किसी हक़दारके वासलातकी बारीकी हुई हो यानी यदि बापने किसी हक़दारकी जायदाद दबा ली हो और उसका मुनाफ़ा लिया हो, पीछे हक़दारके दावा करनेपर मुनाफा वापिस करनेकी डिकरी बापपर हो जाय तो वह पुत्रोंके हिस्से जायदादसे वसूलकी जा सकेगी, देखो--5 C. L.J. 80; 11 C. W. N. 163. (१२) गवर्नमेन्टकी मालगुज़ारी चुकाने के लिये जो कर्जा बापने लिया हो, देखो-1w. k. 96. मेकनाटन हिन्दूला Vol. 2 P. 293.. (१३ ) जो क़र्जा बापने कुटुम्बके खर्चके लिये, अपनी आमदनीका ज़रिया ठीक करनेके लिये लिया हो देखो-2 B. 666. (१४) खान्दानकी कानूनी ज़रूरतोंके लिये देखो इस किताबकी दफा ४३०. (१५) जब बापने किसीके साथ कोई इकरार ऐसा किया हो कि जिसके सबबसे दीवानी और फौजदारी जिम्मेदारी हो जाती हो यानी दीवानी
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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