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________________ पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़र्ज़ा [ सातवां प्रकरण A. 1; 12 Mad. 142; 27 All. 16; 25 All. 57; 23 Mad.292; 16Mad. 99; 11 Mad. 64; 12 Mad. 309; 9 Cal. 452; 12 C. L. R. 47; 36 Boin.68; 13 Bom L. R. 1161; 28 All. 288. लेकिन अगर पुत्र उस मुक़द्दमेमें फ़रीक़ न बनाये गये हों तो वह किसी दूसरे मुक़द्दमे में जो उनपर हो उस क़र्जेकी पावन्दीपर अपत्ति कर सकते हैं, देखो - 22 Mad 49; 4 Mad. 320; 24 Bom. 135; 11 Bom. 37; 27 All. 16. या क़ानून जात्रता दीवानी ऐक्ट नं० ५ सन् १९०८ ई० आर्डर २१ रूल ५७ के अनुसार इजरा डिकरीमें उज्रदारी करें। उक्त रूल ५७ इस प्रकार है: - " अगर कोई जायदाद इजरा डिकरीसे कुर्क हुई हो मगर डिकरीदारके सूरकी वजहसे अदालत इजरा दरख्वास्तकी निस्बत आगे कोई काररवाई न कर सके तो अदालतको लाजिम होगा कि इजराकी दरख्वास्त नामंजूर करे या उचित कार्रवाई के वास्ते आगेकी किसी तारीख तक मुलतबी रखे और इजराकी उक्त दरख्वास्त की नामन्जूरीपर कुर्ती रद हो जायगी" इस विषय में फैसले भी देखो - शिवराम बनाम सखाराम 33 Bom. 39; 10 Bom. L. R. 39; 20 Bɔm. 385; 12 All. 209, 1 Mad. 358. ५. ८२ इलाहाबाद हाईकोर्टने दो मुक़द्दमोंमें से एक में यह कहाकि जब नीलाम न हुआ हो तो पुत्र उस डिकरीपर केवल इस कारण से ही आपत्ति कर सकते हैं कि वे उस मुक़द्दमे में फरीक़ नहीं बनाये गये थे, लेकिन दूसरे मुक़द्दमेमें उसी हाईकोर्ट ने कहा कि पुत्रोंके फरीक़ बनाये जाने या न बनाये जानेमें कुछ भेद नहीं है, देखो - रामदयाल बनाम दुर्गासिंह 12 All. 209; 9All. 142. करुण सिंह बनाम भूपसिंह (1904) 27 All. 16. दफा ४८५ बे क़ायदा नीलामसे पुत्रोंका हक़ रक्षित रहता है जिसके पास बापने रेहन रखा हो उस आदमीने अगर क़ानून इन्तक़ाल जायदाद एक्ट नं० ४ सन् १८८२ ई० की दफा ६६ के विरुद्ध, क़र्जेकी डिकरी में जायदाद नीलाम कराली हो या नीलाम दूसरी तरहसे बे क़ायदा हो तो पुत्रों का हक़ नहीं जाता, देखो -- 22 Mad. 372. दफा ४८६ बापके मरने के बाद इजराय डिकरी बापके मरनेके बाद पुत्रोंके हाथमें जो कोपार्सनरी जायदाद हो उसके विरुद्ध डिकरीदार डिकरी इजरा करा सकता है-इस विषय में जाबता दीवानी एक्ट ५ सन् १९०८ ई० की दफा ५०-५२-५३ देखो । नीचे इन दफाओंका वर्णन किया गया है, देखो दफा ४८७. किसी हिन्दू पिता के खिलाफ रेहननामेकी डिकरीकी तामील उस जायदादपर जो पुत्रोंके अधिकारमें ही हो सकती, किन्तु वे क़र्जको ग़ैर क़ानूनी या गैर तहजीबी साबित कर सकते हैं। केवल यह साबित करना काफ़ी न होगा
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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