SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 599
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१८ मुश्तरका खान्दान [छठवां प्रकरण अवश्य खारिज किया जायगा यानी महेशने जो मुक़द्दमा मियादके अन्दर दायर किया था वह भी खारिज हो जायगा । नतीजा यह हुआ कि ऐसी सूरतमें शिव को मुद्दई बनानेसे कोई लाभ नहीं होगा इसीलिये कोर्ट शिवको बिना मुद्दई बनाये मुक़द्दमा खारिज कर सकती है। अब ऐसा मानो कि ऊपर कहे हुये उदाहरणमें महेश खान्दानका मेनेजर हो और शिव बालिग हो ऐसी सूरतमें गणेशके एतराज़ करनेपर अदालत शिवको फरीक बनायेगी मगर तमादी होनेपर भी मुक़द्दमा खारिज नहीं कर देगी यानी मुकद्दमा अदालतमें सुना जायगा। मुश्तरका खान्दानके सम्बन्धमें अदालत एक सदस्यको दूसरे सदस्यको वली नहीं नियत कर सकती--गार्जियन एन्ड वार्ड्स ऐक्टकी दफा ७ बलवीर बनाम छेदीलाल 85 I. C. 276; A. I. R. 1925 Oudh 642. संयुक्त हिन्दू परिवारके सम्बन्धमें यह निश्चित कानून है कि बहुत सी अवस्थाओंमें केवल प्रबन्धक सदस्यको हो फ़रीन बनाना पर्याप्त होता है। ओरीराम दुबे बनाम केदारनाथ 7 L. R. 63 (Rev). प्रतिनिधित्व बापका-जब किसी मुश्तरका खान्दानका पिता नालिश करता है या उसके खिलाफ नालिश की जाती है तो यह समझा जाता कि उसके द्वारा या उसके खिलाफ की हुई नालिश बहैसियत खान्दानके प्रतिनिधिके कीगयी है, नारायन बनाम मु० धूदा बाई, 21 Nag. L. R. 38; A. I. R. 1925 Nag. 299. दफा ४३७ सब कोपार्सनरोंको मुद्दई बनाया जाना ऊपर कही बातोंसे ( दफा ४३६ ); स्पष्ट है कि दूसरे कोपार्सनरोंका फरीक मुकद्दमा बनाये जानेका सवाल क़ानून मियादकी कैदके कारण इतना अवश्यक होगया है । अगर क़ानून मियादकी दफा २२ वी न होतो इस प्रश्नके विचारकी इतनी आवश्यकता न थी क्योंकि दौरान मुक़द्दमें में किसी समय वह फ़रीक बनाये जा सकते थे। कानून मियादकी दफा २२ की इतनी कड़ी शौसे और इसके सम्बन्धकी नज़ीरोंके मतभेदके कारण उचित यही है कि जब किसी हिन्दू मुश्तरका खान्दानकी तरफसे कोई दावा दायर किया जाय तो सब कोपार्सनरोंका चाहे वह बालिग हों और चाहे नाबालिग हों मुद्दई बनाये जायें। अगर उनमें से कोई मुद्दई बननेसे इन्कार करे तो वह मुद्दाअलेह बनाया जाय । अब तक इस विषयमें जो कुछ निश्चित हो चुका है वह यह है कि मुश्तरका खान्दानके कारबारमें (जैसे रुपयाका लेन देन ) जिसको कि खान्दानका कोई एक या ज्यादा आदमी मेनेजर या मेनेजरोंकी हैसियतसे करते हों और उनको अपने नामसे कंट्राक्ट करने का अधिकार हो
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy