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________________ दफा ४३६ ] अलहदा जायदाद ww अगर वे कोपार्सनर जो मुद्दई नहीं बनाये गये बालिग हों और उन्होंने दावा दायर किया जाना मञ्जूर किया हो और अगर मुद्दाअलेहने मुक़दमेके श्रारम्भमें यह उज्र पेश किया हो कि वे मुद्दई बनाये जावें ऐसी सूरतमें मुद्दा अलेहकी उज्रदारीपर वे सब कोपार्सनर मुद्दई बनाये जायेंगे । क्योंकि इस बातसे मुद्दाअलेहका यह खटका मिट जायगा कि कहीं मेनेजरने उनकी मर्जी के बिना तो दावा दायर नहीं किया । लेकिन अगर मुहाअलेहने मुकद्दमेके आरम्भमें कोई एतराज़ न किया हो तो समझा जायगा कि उसने उन कोपार्सनरोंका मुद्दई न बनाया जाना स्वीकार कर लिया था। और चाहे तमादी भी हो गयी हो तो भी अदालत दूसरे कोपार्सनरोंको मुद्दई बना सकती है। अर्थात् अदालतको ऐसा अधिकार प्राप्त है। देखो-गुरुवाया बनाम दत्तात्रेय 28 Bom. 11; हरी गोपाल बनाम गोकुलदास 12Bom. 158; इमदाद अहमद बनाम तपेश्वरी नारायण (1910) 37 All. 60; इलाहाबाद हाईकोर्टने भी यही बात मानी है, देखो-तपेश्वरी बनाम रुद्रनारायण 26 All. 528. बम्बई हाईकोर्टकी उक्त नजीर (28 Bom. 11 ) सिर्फ उसी मामलेसे लागू होती है जिसमें दूसरे कोपार्सनर बालिरा हो नाबालिग कोपार्सनरोंके मामलेमें लागू नहीं होती क्योंकि नाबालिग रज़ामन्दी नहीं दे सकता-लेकिन फिरभी कलकत्ता हाईकोर्टने हालके एक मुकदमे में तमादी हो जानेपर भी एक नाबालिग कोपार्सनरको मुहई बनाया, देखो-ठाकुर मनी बनाम दाईरानी 33Cal.1079 यह मुकदमा खान्दानी जायदादके रेहननामाकी मंसूखीका था। उदाहरण--'महेश' और 'शिव' एक मुश्तरका खान्दानके मेम्बर हैं उस खान्दानका एक मकान बम्बईमें है गणेश उस मकानमें रहता है। महेश यह कहकर कि गणेशको उस मकानमें रहनेका अधिकार नहीं है, गणेशसे क़ब्ज़ा पानेका दावा करता है यह दावा महेशने अकेले किया अर्थात् शिव को शामिल नहीं किया। दावा अदालतमें पहिली जनवरी सन १६११ ई० को दायर किया गया इस दावा दायर करनेकी कानूनी मियाद आखिरी पहिली अगस्त सन १९११ ई० थी, यानी कानून मियादके अनुसार पहिली अगस्त १९११ तक दावा दायर हो जाना ज़रूरी था पीछे तमादी हो जाती थी। अब जो दावा ता पहिली जनवरी सन् १९११ ई० को दायर किया गया था उसकी पहिली पेशी अदालतमें तारीख पहिली सितम्बर सन् १९११ ई० को हुई। उस दिन गणेश मुद्दाअलेहने अदालतमें अर्ज़ किया कि इस केसमें शिवको मी मुद्दई बनाना चाहिये । ऐसे मामले में स्पष्ट है कि शिव को भी मुद्दई बनाना चाहिये । ऐसा मानो कि अदालतने शिवको मुद्दई बनाया तो गोया पहिली सितम्बर सन् १९११ ई० को ही शिवके सम्बन्धमें मुकद्दमा शुरू हुआ (लिमीटेशन एक्ट सन १९०८ ई० की दफा २२ ). अर्थात् शिव कानूनी मियाद के खतम होनेके बाद मुद्दई बनाया गया ऐसी सूरतमें कुल मुक़द्दमा
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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