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________________ दफा ४३५] अलहदा जायदाद ~~~~~~~~ (२) यह माना गया है कि मुश्तरका खान्दानकी गैर मनकूला जायदादके सम्बन्धमें जो अदालतमें दावा किये जायेंगे उनको सिर्फ मेनेजर नहीं कर सकता यानी वह अपने नाम से अकेला नहीं कर सकता बल्कि दूसरे कोपार्सनरोंको भी मुद्दई बनाना ज़रूरी होगा, देखो-किशुनप्रसाद बनाम हरनारायनसिंह 33 All. 272, 277; 38 I. A. 45, 52. (३) इलाहाबाद और मदरास हाईकोर्टकी राय यह है कि हिन्दू मुश्तरका खान्दानके मेनेजरके पास अगर कोई चीज़ रेहन कीगयी हो तो उसके सम्बन्धमें मेनेजर अलहदा दावा कर सकता है दूसरे कोपार्सनरोंको दावामें शरीक करने की ज़रूरत नहीं है। देखो-हरीलाल बनाम मुनमुन कुंवर (1912) 34 All. 549; मदनलाल बनाम किशुनसिंह (1912) 34 All. 572; 35 Mad. 685.शिवशङ्कर बनाम जाधोकुंवर (1914) 41 I. A. 216, 220. (४) कलकत्ता हाईकोर्टकी राय-इलाहाबाद और मदराससे विरुद्ध है यानी यह माना है कि अकेले मेनेजर नालिश नहीं कर सकता बल्कि सब कोपार्सनरोंको शरीक होना ज़रूरी होगा, देखो-देवीप्रसाद बनाम धरमजीत (1914) 41. Cal. 727. बम्बई हाईकोर्टकी राय भी यही, है देखो-काशीनाथ बनाम विमनाजी 30 Bom. 477; 34 Bom. 354; 12 Bom. L. R. 811. (५) प्रिवी कौन्सिलकी रायमें जबकि मुश्तरका खान्दानकी तरफसे मेनेजरको कारोबारके कंट्राक्ट अपने नामसे करनेका अधिकार प्राप्त है तो ऐसे कारबारमें, जैसे रुपयाका लेन देन मेनेजर स्वयं अपने नामसे दावा कर सकता है दूसरे कोपार्सनरोंको शरीक करनेकी ज़रूरत नहीं है, देखोकिशुनप्रसाद बनाम हरनारायणसिंह (1911) 33 All. 272; 38 I. A. 45; 29 All. 311. मेनेजर प्रतिनिधि है-मुश्तरका खान्दानकी जायदाद, जब तक बटवारा न हो, एक जायदाद है -नालिशमें मैनेजर खान्दानका प्रतिनिधि होता है-किसन बनाम सीताराम A. I. R. 1925 Nag. 160 (2) नोट-जाबता दीवानी सन १९०८ आर्डर ३४ रूल नम्बर १ के अनुसार यह बात मानी गयी है कि "जिनका रेहनसे सम्बन्ध हो वह सब फरीक बनाये जावें" इस बारेमें इलाहाबाद और मदरास हाईकोर्ट की यह राय है कि चूंकि मेनेजर सब कोपार्सनरोंकी तरफसे होता है इसलिये दूसरे कोपासनरोंका मुकद्दमेंमें शरीक करनेकी जरूरत नहीं है परन्तु कलकत्ता और बम्बई की हाईकोर्ट उक्त जावता. दीवानीके शब्दोंको दृढ़तासे मानती हैं यानी जहां तक सम्बन्ध हो सबको फरीक बनना चाहिये । सलगप्पा बनाम वेल्लियन 18 Mad. 38-36 वाले मुकद्दमेंमें मदरास हाईकोर्टने कहा कि जो लोग मेनेजरके साथ लाभमें शरीक हैं उनको (दूसरे कोपार्सनर) बिना शामिल किये मेनेजर दावा नहीं कर सकता और किशुन प्रसाद बनाम हरनारायणसिंह 33 All. 272, 38; I. A. 45. वाले हालके
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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