SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 583
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०२ मुश्तरका खान्दान [ छठवां प्रकरण और संयुक्त खान्दानका मेनेजर था लिखा गया था। दस्तावेज़ ११००) का था और सूद की शर्त १२ फी सदी चक्रविधि की थी । रेहननामेकी रकम में कुछ भी अदा न किया गया और नालिशकी तारीखपर इसकी रकम एक लाख सात हज़ार और कुछ हुई । यह या तो स्वीकारकर लिया गया या विदित हुआ कि पिता कानूनी ज़रूरतोंके लिये रक्कमकी बहुतही ज्यादाज़रूरतमें था और उसको इससे कम सूदपर कर्ज़ न मिल सका था। नाजायज़ दबावकी कोई बात साबित न हुई थी। इस प्रकारकी भी कोई बात न थी कि मुर्तहिनने जान बूझकर राहिनपर रक्रम लद जानेके लिये रकम पड़ी रहने दिया था बल्कि इसके विरुद्ध इस बातका प्रमाण था कि मुर्तहिनने तेज़ीके साथ बढ़ती हुई रकम की इत्तला राहिनको कई बार दी थी और उसे उसके चुकानेकी चेतावनी दी थी। ताहम नीचेकी अदालतने सूदकी दर इतनी कम करदी कि मुद्दालेहके ऊपर कुल रक्रम मय सूद४५०००)रु हुआ जिसके कारण पुत्रोंकी गाढ़ी कमाई अपने पिता की अदूरदर्शिताके कारण, जिसने सूद न चुकाया था और जिसकी वजहसे उनको सूदपर सूद देना पड़ रहा था सबकी सब चली जाती थी। तय हुआ कि नीचेकी अदालतने रेहननामेके सूदकी दर कम करने में, उस हालतमें भी जब वह पुत्रोंके खिलाफ थी, गलती की है। क़र्ज़ और सूद की दर स्वीकार किये जानेपर या आवश्यक मालूम होनेपर, पिता कानूनके मुताबिक उस रकमके ऊपर क़र्ज़ लेनेमें न्यायानुकूल था और बादको मामलेके सम्बन्धमें यह विचार कि आया वह न्यायानुकूल था या नहीं असम्बन्ध है। क्रथिवेन्ती पेराजू बनाम सीता रामचन्द्र राजू 22 L. W. 568; 90 I.C. 458; A. I. R. 1925 Mad. 897; 48 M. L.J. 584. ___ जब यह स्पष्ट प्रमाणित हो गया हो कि जायदाद संयुक्त पारिवारिक जायदाद है और रेहननामा उस व्यक्ति द्वारा किया गया है जिसके सम्बन्धमें यह साबित हो चुका है कि वह खान्दानका मैनेजर है, तो दस्तावेज़में इस प्रकारकी तहरीर कि उसने उस दस्तावेज़को अपने व्यक्तिगत अधिकारकी हद तक लिखा है, दस्तावेज़की असिलियतमें कोई अन्तर नहीं डालती; और उससे जो स्वाभाविक परिणाम निकाला जाता है, वह यही होता है कि मुद्दाअलेहके खिलाफ बहैसियत मेनेजरके नालिश कीगई है। यह आवश्यक नहीं है कि मुद्दई यह साफ़ साफ़ बताये कि वह मेनेजरके खिलाफ नालिश कर रहा है या यह कि मुहाअलेहके खिलाफ बहैसियत मेनेजरके नालिशकी जारही है। पृथ्वीपालसिंह बनाम रामेश्वर A. I. R. 1927 Oudh 27. __ वली द्वारा इन्तकाल-किसी नाबालिगके वली द्वारा किये हुये इन्तकालकी पाबन्दी उसकी रियासतपर तभी होगी, जबकि यह साबित होगा, कि वह रियासतके फायदेके लिये है। कृषि सम्बन्धी खान्दानके विषयमें वली द्वारा सीरका लेना नाबालिगकी रियासतके फायदेके लिये समझा जायगा।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy