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________________ दफा ४२८] अलहदा जायदाद फायदेके लिये ज़रूरी थी व्यापारमें लगाया। व्यवसाय ऐसा न था, जिसमें भाग्यपरही भरोसा करना हो, किन्तु अन्तमें वह असफल रहा। तय हुआ कि पीछे की नाकामयाबी इस बातका जरिया नहीं है जिसके द्वारा यह निश्चय किया जा सके कि आया वह व्यवसाय चतुरता पूर्ण व्यवसाय न था जिसेकि खान्दानके मेनेजर या पिताने,जिसेकि खास तौरपर खानदानके फ़ायदेके लिये व्यवसाय करनेका अधिकार है किया था। जगमोहन बनाम प्रयाग अहीर 23 A. L. J. 209; 87 I. C. 27; 47 All. 452: A. I. R. 1925 All 618. जब कोई नाबालिग किसी हिन्दू मुश्तरका खान्दानका सदस्य हो और उस अवस्थामें किसी पूर्वजोंके व्यवसायका हिस्सेदार हो, तो खान्दानका मेने जर, नाबालिगकी तरफसे उसे व्यवसायको तब तक शुरू रख सकता है, जब तक कि वह खान्दानके लिये फ़ायदेमन्द हो । नाबालिगोंपर, मैनेजरके उन कामों की पाबन्दी होगी जो कि उस व्यवसायके करनेमें आवश्यकतानुसार आयेंगे । पूर्वजोंका व्यवसाय भी, दूसरी हिन्दू जायदादकी तरह, मुश्तरका खान्दानके सदस्योंको उत्तराधिकारसे प्राप्त होता है और इस प्रकारका खानदान मेनेजर द्वारा, किसी अन्य व्यक्तिके साथ साझीदार हो सकता है। खानदानी व्यवसायके चलामेका अधिकार जो कि मेनेजरको होता है इस अधिकार को भी रखता है कि वह व्यवसायके साधारण बातोंमें खान्दानी जिम्मेदारी और साखसे काम ले । यद्यपि नाबालिगके सम्बन्धमें, हिन्दूलॉ के अनुसार इस प्रकारका अधिकार बहुतही परिमित और व्याख्या सहित है और मेनेजर उसे केवल वैसीही अवस्था में, जो कि खान्दानके लिये फ़ायदेमन्द हो काममें ला सकता है। जबकि कोई व्यवसाय, जैसेकि कर्ज देना, जो कि मुश्तरका खानदानके फ़ायदेके लिये किया जाता है उस सूरतमें प्रबन्धक सदस्यको ला महाला मुआहिदा करने, रसीद देने, और वसूलयाबीके सम्बन्धमें समझौता करने या वसूल करने आदिके साधारण और इत्तिफ़ाकिया अधिकार देने पड़ते हैं। बिना इस प्रकारके श्राम अधिकारोंके व्यवसायका चलाना असम्भव है। अब कि किसी खान्दानका व्यवसाय गैर मनकूला जायदादोंके सम्बन्धमें क्रय-विक्रय करना होता है तो ऐसे व्यवसायके सम्बन्धमें निस्सन्देह किसी जायदादके बेचनेका जो कि बेचनेके लिये ही खरीदी गई है उस व्यवसायको चलानेके लिये अधिकार देना पड़ता है। उस सूरतमें भी जबकि खान्दानका आम व्यवसाय जायदाद सम्बन्धी क्रय-विक्रय न हो बल्कि रेहननामोंपर कर्ज देना हो, तब भी खान्दानको हानिसे बचानेके लिये अपने रुपयेकी अदाईमें जायदाद खरीदनी पड़ती है इस अवस्थामें भी यह एक संयोगिक कार्य हो जाता है कि मैनेजर उचित समयपर उस जायदादको बेंचे और उससे अपनी रकम वसूल करे । मेनेजर द्वारा किसी खान्दानकी जायदादका इन्तकाल, उसी मूरतमें 63
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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