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________________ मुश्तरका खान्दान [ छठवां प्रकरण जहांपर यह चाहा जाता हो कि खान्दानी जायदादपर, उस क़र्ज़ की पाबन्दी लगाई जाय, जो मेनेजर द्वारा लिया गया हो, वहां महाजनकी जिम्मेदारी होगी कि वह क़र्ज़की आवश्यकता साबित करे, गजाधर महातों बनाम अम्बिकाप्रसाद 67 A. 459; 27 Bom. L. R. 853; 87 I. C. 292; L. R.. 6 P. C. 126; (1925) M. W. N. 532; 22 L. W. 306; 41 C. L. J. 450; A. I. R. 1925 P. C. 169; 89 M. L. J. 238(P.C.) E उदाहरण -- मुश्तरका खानदानके प्रबंध करने वाले तीन भाइयोंने मुश्तरका खानदान के कामके लिये महाजनसे क़रज़ लिया. दो भाई मर गये, महाजनने तीसरे भाई और उन दोनों भाइयोंकी संतानपर उस क़रज़ेके पाने का दावा किया । शानदानकी कुल जायदाद उस क़रज़ेकी देनदार है उस तीसरे भाईकी जात और दूसरी जायदाद मी ज़िम्मेदार है परंतु उन दोनों भाइयोंकी संतान ज़िम्मेदार नहीं है क्योंकि वह क़रज़ा लेनेमें खुद शरीक न थे, देखो - 22 Mad. 169. अगर किसी मेनेजरने अपनी जाती जिम्मेदारीपर क़रज़ा लिया हो और उस रुपयाको खानदान के कामोंमें खर्च किया हो तो उस सूरत में ख़ानदानकी कुल जायदाद ज़िम्मेदार है; देखो -- अझोरनाथ बनाम प्रीशचन्द्र 20 Cal. 18. दफा ४२८ मुश्तरका खानदान के कारोबार के मेनेजर के अधिकार खानदानके कारोबारके वास्ते क़र्ज़ लेने के अधिकारके अलावा मेनेजरको यहभी अधिकार है कि वह कंट्राक्ट करे, रसीदें दे, और कारबार के संबंध में सब तरहके मामलों का फैसला करे । ऐसे सर्वव्यापी अधिकारके बिना कारबारका चलना असंभव है; देखो -- किशुनप्रसाद बनाम हरनरायन सिंह ( 1911 ) 33 All. 272; 38 I. A. 45. मुश्तरका खानदानके कारोबारके प्रबंधके मेनेजर या मेनेजरोंने अपने नामसे कारबार संबंधी कंट्राक्ट किये हों, तो सवाल यह पैदा होता है कि उन कंट्राक्टोंके विषयमें अदालत में दावा करने के समय अर्जीदावा (Plaint ) में मुद्दईकी जगहपर सिर्फ प्रबंधक मेनेजर या मेनेजरोंका नाम लिखा जाय या खानदानके अन्य मेम्बरोंके भी नाम लिखे जायें। इस बारे में प्रिवी कौंन्सिलकी यह राय हुई है कि दूसरे मेम्बरोंके नाम भी लिखे जाना ज़रूरी होगा; देखो -- किसुनप्रसाद बनाम हरनारायन सिंह 33 All 272, 38 1. A. 45. इन्तक़ाल पिता द्वारा - व्यवसायके लिये हिन्दूलॉ के अनुसार, किसी खान्दानके मैनेजर द्वारा, क़ानूनी आवश्यकता या खान्दानके फायदेके लिये इन्तक़ाल किया जा सकता है । एक हिन्दू पिताने एक संयुक्त जायदादको, जिसके द्वारा थोड़ी सी आमदनी थी और जो कि खान्दानकी आवश्यकता के लिये काफ़ी न थी, बेचा और बिक्रीकी रक़ममें से उतनी रकम जो खान्दानी
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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