SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 550
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा ४१७] कोपार्सनरी प्रापर्टी होंगे। राम उस वक्त पूरे मालिककी तरह जायदादको नहीं रख सकता और न वह उस जायदादको अपनी इच्छाके अनुसार काममें ला सकता है। यह बात गौर करना ज़रूरी है कि सिर्फ वही जायदाद जो कि एक हिन्दू अपने बाप, दादा, परदादासे पाता है वह सिर्फ उसके बेटों, पोतों, परपोतोंके लियेही पैतृक सम्पत्ति होती है दूसरा कोई कुटुम्बी अपनी पैदाइशसे हक़ नहीं प्राप्त कर सकता। और जब कोई जायदाद किसी हिन्दूको बाप, दादा या परदादासे तो मिली हो मगर सीधे तौरसे न मिली हो यानी किसी दूसरे आदमी या औरतके मरनेके बाद मिली हो जिसका हक उस जायदादपर सिर्फ हीन हयाती हो तो जब वह जायदाद उसके पास आवेगी तो वह उसके लड़के, पोते, परपोतोंके लिये पैतृक सम्पत्ति बन जायगी। यह भी ध्यान रखना कि.जब किसी पुरुषको कोई जायदाद किसी पूर्वजसे मिले और उसके कोई पुरुष सन्तान न हो, उस वक्त वह जायदादको कहीं बेच दे पीछे उसके लड़का पैदा हो जाय तो फिर उस लड़केका हक उस जायदादमें कुछ नहीं रहेगा। और अगर कुछ जायदाद बापके पास बेंचनेसे बाकी रह गयी होगी उसमें बेटे, का हक प्राप्त हो जायगा । जैसे रामको एक जायदाद वरासतमें बापसे मिली, रामके कोई बेटा, पोता, परपोता नहीं है लेकिन उसके बापका भाई (चाचा) है। चाचा अपनी पैदाइशसे उस जायदादमें कोई हक्क प्राप्त नहीं करता चाचाके लिये ऐसी जायदाद रामकी अलहदा जायदाद है क्योंकि राम का उस जायदादमें पूरा अधिकार है कि जैसा जी में प्रावे करे। अब हम मुश्तरका खानदान सम्बन्धी अन्य बातोंका आगे ज़िकर करते हैं। __प्रत्येक सदस्य द्वारा अपनी अपनी पैदावार संयुक्त परिवारके कोषमें सम्मिलित करना-समस्त संयुक्त परिवारकी जायदाद हो जाती है। पारवथी अम्मला बनाम एम० आर० शिवराम अय्यर A. I. R. 1927. Madras. 90. अविभाजनीय जायदाद-अविभाजनीय जायदादका इन्तकाल उसके अधिकारी द्वारा होसकता है, यदि कोई विपरीत रवांज न हो-रवाजके साबित करनेकी जिम्मेदारी अधिकारीके ऊपर है। ठाकुर रघुराजसिंह बनाम ठाकुर देषीसिंह. A. I. R. 1927 Nagpur. 15.. . जब कोई हिन्दू पिता और उसके पुत्र संयुक्त श्रमसे जायदाद प्राप्त करते हैं और इसके अतिरिक्त भोजन और पूजनमें भी संयुक्त हों, उनके सम्ब न्धमें यह ख्याल किया जाना चाहिये कि उनका परिवार संयुक्त परिवार है चाहे उनके पास कोई पूर्वजोंकी जायदाद जो पिताको अपने पिता, पितामह या प्रपितामहसे मिली हो, न हो । हरिदास बनाम देवकुंवर बाई 28 Bom. L. R. 637. सबूतकी जिम्मेदारी-संयुक्त खान्दानी जायदादके केन्द्रका अस्तित्व -त्रिलोक्य नाथ बनाम चिन्तामणि दत्त 30 C. W. N. 588.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy