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________________ दफा ४१७] कोपार्सनरी प्रापर्टी (४) जो जायदाद मुश्तरका खानदानकी जायदादको बेचकर खरीदी गई हो मुश्तरका है-18 Mad. 73; 3 Cal. 508; 1. Cal. L. R. 343. (५) जो जायदाद मुश्तरका खानदानकी मनकूला जायदादसे खरीदी गई हो मुश्तरका है-3 Cal. 508; 1 Cal. L. R. 343. अगर किसी मुश्तरका खानदानके आदमीने मुश्तरका खानदानकी जायदादसे बिल्कुलही कम सहायतासे कोई जायदाद प्राप्तकी हो तो ऐसा माना गया है कि वह जायदाद उसकी अलहदाकी समझी जाना चाहिये 10 M. I. A. 490505; 13 Bom. 534; और जिस जायदादके प्राप्त करने में, सीधी तौरसे मदद मुश्तरका खानदानकी जायदादसे न मिली हो और चाहे प्रकारान्तरसे मिली भी हो तो वह जायदाद अलहदाकी समझी जायगी यानी जिस आदमीने पैदा की हो उसकी निजकी समझी जायगी; 10 Bom. 528; स्टून्जके हिन्दूला पेज २१४ में कहा गया है कि-अगर ऐसा कोई उजुर किया जाता हो कि जिसने अलहदा जायदाद कमाई है उस आदमीके सिर्फ खाने पीनेका खर्च मुश्तरका जायदादमें से होता रहा है इसलिये वह सब जायदाद मुश्तरका है, इसका कुछ असर नहीं होगा। और अगर कोई आदमी मश्तरका खानदानका जायदादमें से अपने खर्वके लिये उसकी आमदनी लेता हो तो उस आदमीकी पैदा की हुई सब जायदाद मुश्तरका होगी; 4 Mad. H. C. 5. (१४) जो जायदाद विद्वत्ताके पेशेसे कमाई गई हो। अगर किसी आदमीको खास तौरसे पढ़ानेका खर्च मुश्तरका. जायदादसे किया गया हो और उसने अपनी विद्वत्तासे जो धन कमाया हो वह सब मुश्तरका खानदान में शामिल हो जायगा-और अगर मुश्तरका खानदानकी जायदादकी आमदनीसे खास तौरपर शिक्षा प्राप्त करके विद्वता न प्राप्त कीगयी हो तो कोई आदमी जो अपनी विद्वता के पेशेसे जायदाद पैदा करे वह उसकी अलहदाकी होगी। इस बारेमें अधिक देखो इस किताबकी दफा ४२०. (१५) देवोत्तर जायदाद । किसी धार्मिक कामके लिये जो जायदाद दीगयी हो उसके टूस्टियोंमें दूस्टकी कोपार्सनरी होती है। और ऐसी जायदादका बटवारा नहीं हो सकता, देखो-रामचन्द्र पण्डा बनाम रामकृष्ण महापात्र (1906) 33 Cal. 507. देखो प्रकरण १७. उदाहरण-अ, और ब, एक मन्दिरकी जायदादके ट्रस्टी हैं मन्दिरकी जायदादकी बचतसे दूसरी जायदाद खरीदी गई तो अ, और ब, उसके भी ट्रस्टी हैं क्योंकि जो दूसरी जायदाद खरीदी गयी वह कोपार्सनरी जायवादमें शामिल होगयी मगर दोनों दूस्टी उसे बांट नहीं सकते हैं। (१६) मिन्न शाखावालोंसे और स्त्रियोंसे उत्तराधिकारमें पायी हुई जायदाद । मानाकी जायदादके झगड़ेको छोड़कर यह कहा जा सकता है कि सिर्फ बाप, दादा, परदादासे पायी हुई जायदाद पैतृक सम्पत्ति होती है यानी 59
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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