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________________ [ छठवां प्रकरण हुये आदमीके मरनेपर जब उसकी छोड़ी हुई जायदाद उसके बेटोंके पास आवेगी, तब वह जायदाद फिर कुदरती तौरसे मुश्तरका हो जाया करती है । नतीजा यह है कि आम तौरपर हिन्दू खानदान मुश्तरका होता है: देखो - रामनरायन सिंह बनाम प्रीतमसिंह 11 B. L. R. 997; S. C. 20 Suth. 189; और देखो - दफा १६८ । ४३२ मुश्तरका खान्दान प्रत्येक हिन्दू खान्दान मुश्तरका समझा जायगा, जब तक कि उसका बटवारा न साबित किया जाय - कोई जायदाद मुश्तरका है यह फरीकों के बर्ताव से समझा जायगा, उस सूरत में जबकि कोई शहादत न होगी - अदालतको उस समय बहुत ही सावधानीकी आवश्यकता है जिस समय कि हिन्दू स्त्रीके मुश्तरका होने का प्रश्न हो--क़ानून शहादतकी दफा १०१ - - कुमुदिनी दास्या बनाम मुख सुन्दरी दास्या A. I. R. 1925 Cal. 257. दफा ३८५ मुश्तरका ख़ानदानके मेम्बर हिन्दुओं में मुश्तरका खानदानका फैलाव बहुत बड़ा है- मुश्तरका खानदानमें मृत पुरुष के पूर्वज और उनकी सन्तान, इसी तरह पर नीचेकी शाखा में बहुत दूर तक मुश्तरका खान्दानका फैलाव होता है। मुश्तरका खानदान के मुकाबले में 'हिन्दू कोपार्सनरी' (दफा ३६६-४०० ; का फैलाव बहुत छोटा है। जब हम हिन्दू मुश्तरका खानदान के बारेमें कहते हैं जिससे 'कोपार्सन बनती है, तो हमारा मतलब उन सब कुटुम्बियोंसे नहीं है, जो किसी एकही दूरके पूर्वजकी सन्तान हैं, और जिनमें अभी तक बटवारा नहीं हुआ बल्कि हमारा मतलब सिर्फ उन कुटुम्बियोंसे है जो अपनी रिश्तेदारी की वजह से खानदानकी मुश्तरका जायदादपर नीचे लिखे हक़ रखते हैं (१) मुश्तरका जायदादपर अपना क़ब्ज़ा रखकर उससे लाभ उठाने का हक़ रखते हैं और ( २ ) उस जायदादपर अपने क़र्जेका बोझा डाल सकते हैं और ( ३ ) जायदादको गिरवी करने या बेचने आदिसे एक दूसरेको रोक सकते हैं और ( ४ ) अपनी इच्छासे उस जायदादका बटवारा करा सकते हैं। हिन्दू खानदान मुश्तरका में 'कोपार्सनरी' के सिवाय और जो आदमी शामिल हैं उनका हक़ कम होता है, जैसे सिर्फ रोटी, कपड़ा पाना । मुद्दत रका खानदान में ऐसे भी आदमी होते हैं जो किसी खास सूरतके पैदा होजाने पर 'कोपार्सनरी' की हक़दारीके अन्दर आ जाते हैं इसलिये 'कोपार्सनरी' हक़दारी कैसी होती है इसके बतानेके पहिले यह बात ज़रूरी हैं कि कोपानरीके समझाने में जिन जिन बातोंकी ज़रूरत पड़ेगी, वे पहिलेही साफ तौर से बता दी जायें। देवदासियों (वेश्याओं) की हिस्सेदारी नर्तकी कुमारियों ( वेश्याओं ) की भी खान्दानी हिस्सेदारी जीवित रहने के अधिकारसे हो सकती हैं। ऐसी
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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