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________________ ३७८ नायालिगी और वलायत [पांचों प्रकरण [इन्डियन लिमीटेशन एक्ट ६ सन १९०८ ई० के अनुसार - दफा ३७४ नाबालिग बैनामा या रेहननामा मंसूखीका दावा कब कर सकता है ? इन्डियन लिमीटेशन ऐक्टकी दफा ४४-अज्ञान बालिग होनेपर अपनी उस जायदाद के वापिस पानेका दावा कर सकताहै, जिसे उसके वलीने बेच दीहो या रेहन कर दीहो, या और किसी सूरतसे अज्ञानके स्वामित्वसे हटा दीहो । ऐसी नालिश दायर करनेकी मियाद तीन सालकी है और यह मियाद अज्ञानके बालिग होनेकी तारीखसे शुरू होगी। . नोट-इसदफामे यह मतलबहै कि अगर वह अज्ञानका कानूनी वली या असली वली न हो और उसने जायदादकोच दिगा हो या रेहनकर दियाहा अथवा और किसी तरहसे अज्ञानके स्वामित्व से हटा दियारो, तो उस सूरतगे यह दफा लागू नहीं पड़ेगी । यह दफा सिर्फ असली वली भौर कानूनी बलीकी हैसियत पर लागू पड़ेगी। उदाहरण-बाप अपने अज्ञान लड़कोंका घली था, उसने बलीकी हैसियतमें अज्ञानोंकी जायदाद रेहन कर दी। और जिसने रेहन कराया था उसने रेहननामा के आधारपर नालिश अदालतमें दायरकी, जिसमें अज्ञान लड़कोंको फरीक बनाया। अदालतने दावा मुद्दई डिकरी किया। जब उनमें से एक लड़का बालिग़ हुआ तो उसने बालिग़ होनेकी तारीखसे तीन सालके अन्दर रेहननामा मंसूख करापानेकी नालिश अदालतमें दायर नहीं की। अर्थात् तीन सालके बाद नालिशकी। अर्जीदावामें वादीने कहाकि रेहननामा जाली है; और दोनोंने मिलावट करके लिखा है। यद्यपि अदालत ने यहबात स्वीकार नहीं की, मगर यहांपर देखना यहहै कि ऐसी बुनियाद पर मियाद बढ़ जाती है जबकि यह कहा जाता हो कि दस्तावेज़ जाली है और मिलकर लिखी गई है , नज़ीर देखो-रघुबर बनाम भिरिवया (1889) 12 C. 69. (१) बारह वर्षकी मियाद-इस बातका ध्यान रखना कि अगर अशान की किसी जायदादको कीमतमें एवज़ लेकर उसके वलीने अज्ञानके स्वत्वाधिकारसे हटादी हो तो उस सूरतमें दफा १३३ और १३४ लिमीटेशन ऐक्ट की लागू पड़ेगी। जिसके अनुसार १२ वर्षकी मियाद दावा करने के लिये कायमकी गई है ; और यह बारह वर्ष की मियाद उस तारीखसे शुरू होती है जिस तारीख में वह हटाई गई हो; यानी खरीदने की तारीखसे, और अगर यह मियाद अज्ञान की अज्ञानतामें ही समाप्त होजाय तो अज्ञानको बालिग
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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