SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 451
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७० नाबालिगी और वलायत [पांच प्रकरण ww 13 Bom 137; कलावती बनाम छेदीलाल 17 All. 531 रंगराव बनाम राज गोल 22 Mad. 378; 26 Bom. 109 राखल बमाम अद्वैत 36 Cal. 613. __ अगर बिला मंजूरी अदालत के सुलहनामा के आधार पर कोई डिकरी की गई हो तो पक्षकार को साबित करना निहायत ज़रूरी है। कि सुलह नामा की रज़ामंदी ऐसे आदमी ने दी थी जो कानूनन नाबालिग्न के पाबन्द करने का अधिकार रखता था। मगर ऐसी रजामन्दी उस सूरत में पाबन्दी के काबिल नहीं होगी अगर वह ऐसे आदमी के गलत बयान करनेके आधार पर निर्भर हो जिसे अज्ञानके विरुद्ध कुछ लाभ प्राप्त होता हो; देखोमोहम्मद मुमताज़ बनाम शिवरतन गिर 23 I. A. 75. S. C. 23 Cal. ५34; राम अटर बनाम राजा मोहम्मद मुमताज़ 24 I. A. 107; S. C. 24 Cal.853. अब किसी नाबालिग्न की ओर से कोई मामला किया जाय, तब उसके जायज़ होने के सम्बन्ध में यह देखना चाहिये कि आया कोई साधारण आदमी, अपनी खास जायदाद के सम्बन्ध में वैसा मामला करता या नहीं, और यदि वह वली सरकार की ओर से नियत किया गया होता और उसने उस मामले की मञ्जूरी के लिये अदालत से प्रार्थना की होती तो अदालत ने उसकी मन्जूरी दी होती या नहीं-के० मुनय्या बनाम एम० कृष्णय्या 20 L. W.693; 84 I. C. 949; A I. R. 1925 Mad. 215; 47 M. L.J.737. दफा ३६२ कौन डिकरी नाबालिगको पाबन्द करेगी जिस नाबालिग की तरफ से किसी मुक़द्दमे में उसका (प्रापरली, रिप्रेज़न्टेटिव ) वकील या जिसे कानूनी पैरवी करने का अधिकार हो अदालतमें हाजिर होकर अज्ञान की तरफ से उसके लाभ के लिये योग्य पैरवी की हो। उस मुक़द्दमे के नतीजे का नाबालिग पाबन्द होगा चाहे उस मुक्तइमे का नतीजा अज्ञान के लाभ के विरुद्ध हो या तस्फीया हो जाय, या दस्तबरदारी कर ली जाय, देखो इस विषय पर नजीरें बहुत हैं दो एक यहां पर देते हैं--विरूपाछय्या बनाम शिदाया 23 Bom. 620; गोपीनाथ बनाम रामजीवन S. D. of 1859, 913; गोपालराव बनाम नरसिंह 22 Mad. 3083 श्राशुनचन्द्र बनाम नन्दमनी 10 Cal. 367; जब कोई ऐसी डिकरी अदालत से प्राप्त कर ले जो ज्ञानको पाबन्द करती हो, और वह भूल से उस डिकरी को अज्ञानके वलीपर जारी करादे तो महज़ इस वजेहसे डिकरीका यह हक़ नहीं मारा जायगा कि वह अपनी उसी डिकरीको दुबारा अज्ञानपर जारी न करा सके अर्थात् करा सकता है 12 Bom. 427.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy