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________________ दफा ३५६-३६१] नाबालिगी और वलायत ३६६ इक़रार किया हो या कोई लिखत की हो। ऐसी सूरत में अज्ञान अपनी नाबालिग्री का उज्र कोर्ट में पेश कर सकता है कि जब वह इकरार किया गया था या लिखत कीगई थी मैं नाबालिग था जब उस पर नालिश की आय । अज्ञान भी अपने उस इक़रार या लिखत को मन्सून करा देने का दावा कर सकता है जो नाबालिगी की अवस्था में लिखी गई थी, देखोधनमल बनाम रामचन्द्र 24 Cal.265 इस मुकदमे में एक नाबालिगने अपनी उमर बालिरा बताकर एक रेहन नामा लिख दिया था और रुपया पा लिया था। रेहननामा लिखने वाले ने नालिश की, वादी के वकील ने यह स्वीकार कर लिया था कि वह नाबालिग़ के झूठ उमर बताने के सबब से रेहन की डिकरी हासिल नहीं कर सकता इसी से योग्य वकील ने रेहन के दावा को छोड़कर सादी डिकरी अदालत से मांगी। हाई कोर्ट से यह फैसला हुआ कि अज्ञान उस रूपया के देने के लिये मजबूर किया जा सकता है जब यह साबित हो कि उसने फरेब देकर रुपया हासिल किया, दावा डिकरी हुआ। दूसरा मुक़दमा बिल्कुल इसी किस्म का था मगर वकील ने रेहन की डिकरी मांगी थी इस लिये दावा खारिजहो गया, देखो-सरलचन्द मित्र बनाम मोहन बी बी 25 Cal. 371 तीसरा मुकदमा इसी तरह का और पैदा हुआ इसमें एक आदमी ने एक लड़के से जायदाद का बैनामा लिखाया था, लड़के ने अपनी उमर २२ वर्ष बताई थी, जब उस बैनामा की नालिश अदालत में दायर हुई तो यह उज्र पेश किया गया कि उस वक्त लिखने वाला अज्ञान था। हाईकोर्ट बम्बई ने दावा खारिज कर दिया और कहा कि खरीदार को यह मालूम था कि वह झूठ बोल रहा है और उसने उसे झूठ बोलने दिया तथा उस बात को मानकर उसने बैनामा लिखाया इस लिये अब वादी एबीडेन्स एक्ट नं० ६ सन् १८७२ ई० की दफा ११५ के अनुसार अपनी बात से हट नहीं सकता । देखो स्टापुल । दफा ३६१ अज्ञानके मुकदमे में सुलहनामा ___ अज्ञानकी तरफसे वली सुलहनामा (कम्प्रोमाइज़) कर सकता है देखो निर्विनय बनाम निर्विनय 9Bom365; जब किसी अज्ञानके मुक़द्दमें में आपसमें सुलह यानी राजीनामा हो जायतो अदालत उस सुलहनामाको उस वक्त तक मञ्जूर नहीं करेगीजबतककि उसे इस बातका पूरा यकीन न होजायकिसुलहनामा से अज्ञान को फायदा पहुंचता है और नाबालिग के फायदे के लिये किया गया है, और अगर ऐसी मंजूरी अदालत से न ली गई हो तो उस सुलहनामा का पाबन्द अज्ञान नहीं होगा बल्कि जो डिकरी ऐसे सुलहनामा की बुनियाद पर की गई हो वह अज्ञान के प्रार्थना करने पर मंसूख कर दी जायगी, देखो राजा गोपाल बनाम मुहुपालम 3 Mad, 103 करमअली बनाम रहीम भाई
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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