SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नाबालिग्री और वलायत [ पांचवां प्रकरण जब किसी दस्तावेज़ इस्तराराक़ (गिरवी) में किसी वली द्वारा यह लिखा गयाहो, कि मैं इक़रार करता हूं कि मैं अदा करूंगा, तो इस प्रकार के इक़रार नामे की पाबन्दी यद्यपि वली की जात पर न होगी, ताहम यह जरूरी है कि वली इस बात को बताये कि उक्त रक्कम नाबालिग के फ़ायदे के लिये खर्च की जायगी और यदि उस तरीक़े पर रक़म न हासिलकी जायगी तो नाबालिग के कारोबार को नुक़सान पहुंचेगा। पी० नगलिन गप्पा बनाम for 83 I. C. 39; A I. R. 1925; Mad 425. ३६० किसी नाबालिग की कोई जायदाद उसके वली द्वारा मुनासिब क्रीमत पर बेची गई । क़ीमत फरोख्त की आधी रक़म के लिये क़ानूनी ज़रूरत थी, यानी नाबालिग के पिता द्वारा लिये हुये क़र्ज़ को अदा करना था | आधी रक़म से वह क़र्ज़ अदा किया गया; और शेष आधी रक़म पर खरीदार से एक प्रामिसरी नोट इस शर्त का कि वह रक्कम मय सूद दर ६ फ़ीसदी सालाना, नाबालिग्नको उसके बालिग होने पर दी जाय, लिखा लिया गया । खरीदार ने प्रामिसरी नोट का रुपया ठीक वक्त पर चुका दिया, तब हुआ कि वनामा जायज था । के० - मुन्नय्या बनाम एम० कृष्णप्पा 20 L W. 693, 84 I. C. 949; A. I. R. 1925; Mad. 215; 47 ML. J.737. वली द्वारा इन्तक़ाल क़ानून या रिवाज के अनुसार किसी वेश्या पर अपने भाई की शादी करने की जिम्मेदारी नहीं है अतएव उसके वली द्वारा उसके भाई की शादी के लिये रेहननामे द्वारा लिये हुये क़र्जे की जिम्मेदारी उस पर नहीं है। तंजोर कन्ना अम्मल बनाम तंजोर रामतिक अम्मल A. I. R. 1927 Mad. 38. वली द्वारा जायदादका इन्तक़ाल तथा लाभ या आवश्यकता-सुरेन सिंह बनाम बाबू 91 I. C. 1054; A. I. R. 1926 Lah. 197. कुदरती वली -- किसी हिन्दू नाबालिग़के कुदरती वलीको उसकी जायदाद के प्रबन्ध में, यह अधिकार है कि आवश्यकता या जायदाद के फ़ायदे के लिये, उसके किसी भागको रेहन करे या बेचे । सुरेन सिंह बनाम बाबू 26 Punj. L. R.781. नोट- यान रखना चाहिये कि जितने वालिगं उससमय मौजूद हों सबकी मंजूरी जरूरी हैं एक बात यह पैदा हो सकती हैं कि अगर चार वालिग मौजूद है और उनमें से दो कहीं बाहर चले गये हैं । मौजूदा दो वालिग की मंजूरी लीगई और रन कर दिया गया । जब रहेनकी नालिश हुई तो उसवक्त वह दोनों वालिग मरगये थे जिनकी मंजूरी न ली गई थी । अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या रहननामा लिखने के वक्त जायज था ? नालिश केवल सम्भवतः यह विचार किया जायगा कि दोनों के मरने पर उनके वारिस वही दोनों थे जिन्होंने लिखा । तथा उस दस्तावेज के मजमून पर से बहुत कुछ तय होगा ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy