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________________ ३२४ दत्तक या गोद कृत्रिम दत्तक 1-1 [ चौथा प्रकरण दफा ३०५ कृत्रिम पुत्रका दरजा यद्यपि कृत्रिम पुत्रको, वसिष्ठ, विष्णु, शंख लिखितने नहीं माना और ब्रह्मपुराणमें इस पुत्रका ज़िकर नहीं है । परन्तु मनु, बौधायन गौतम, याज्ञवल्क्य, नारद, हारीत, देवल, यम, और बृहस्पतिने माना है तथा इस पुत्रका ज़िक्र कालिका पुराणमें किया गया है। जिन स्मृतिकारोंने इस पुत्रको माना है उन्होंने अन्य पुत्रोंके साथ इसका दरजा क़ायम किया है । जैसे मनुने ४, बौधायनने ५, गौतमने ४, याज्ञवल्क्यने ६, नारदने ११, हारीतने १२. देवल ने ११, यमने १० बृहस्पतिने ६ और कालिका पुराण ने चौथा क़ायम किया है । गौतम, मनु और कालिका पुराण चौथे दरजे से सहमत हैं बाक़ी आचा . भिन्न भिन्न दरजे मानते हैं । दरजेका अर्थ श्रेणी या बर्ग होता है, दरजेसे यह मतलब कि किससे कौन श्रेष्ठ है और कौन कम है। इसे यों समझ लो कि औरस पुत्रको सब चाय्योंने पहिला दरजा कायम किया है इसलिये वह सबसे श्रेष्ठ है और बाक़ी पुत्रोंके बारेमें एक राय नहीं है। इस तरहपर कृत्रिम पुत्रको मनु, औरस पुत्रसे चौथा दरजा देते हैं यानी औरस पुत्रकी अपेक्षा वह चार दरजा हीन हैं -- देखो इस किताब की दफा ८६, ६०. दफा ३०६ कृत्रिम के सम्बन्धमें धर्म शास्त्रकारों का मत कृत्रिम पुत्रकी तारीफ़ समझने के लिये स्मृतियों के कुछ वचन नीचे उद्धृत करता हूँ - मनु - सदृशंतु प्रकुर्याद्यं गुणदोष विचक्षणं । पुत्रं पुत्रगुणैर्युक्तं सविज्ञेयश्च कृत्रिमः । मनुः अ० ६ - १६६ सदृशमिति - यं पुनः समान जातीयं पित्रोः पारलौकिक - श्रादादिकरणाकरणाभ्यां गुणदोषौ भवत इत्येव मादिज्ञं, पुत्रगुणैश्च माता पित्रेणराधनादि युक्तं पुत्रं कुर्य्यात् स कृत्रि माख्यः पुत्रोवाच्यः । कुल्लूक भट्टः याज्ञवल्क्य — क्रीतश्च ताम्यां विक्रीतः कृत्रिमः स्यात्स्व यंकृतः । अ० २ - १३१
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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