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________________ ३१८ दसक या गोद [चौथा प्रकरण नोट-यहां पर वसीयत या हिवा से यह मतलब है कि जायदाद किसी शर्त के साथ और किसी आधार पर दूसरे को दीगई हो, हिबा से ऐसा अब नहीं समझना कि अपनी जिन्दगी ही में और उसी वक्त देदी गई हो ऐसी दिवा वसीयती हिवा कहलाती है देखो प्रकरण १६, (8) किस सूरतमें विधवाको वसीयती जायदाद नहीं दिलाई जायगीजब आदमी कोई अपनी स्त्रीको ऐसी वसीयत करे कि “जबतक वह, मेरी विधवाकी हैसियतसे अपना धर्म पालन करे और शादी नकरे तो उसको सालाना इतना रुपया बराबर मिलता रहेगा" उस आदमीके मरनेसे पहिले अगर यह साबित हुआ कि उसका विवाह प्रारम्भसे ही नाजायज़ था तथा इस बुनियाद पर उसे छुटकारा दिया गया। तो ऐसी सूरतमें उसे सालाना रुपया नहीं मिल सकता देखो-इंगलिश लॉ, रिपोर्टस् चान्सरी डिवीज़न 22 P. 697; यही फैसला कबूल किया गया 25 Ch. D. 685. (१०) किन सूरतोंमें हिबानामा जायज़ रहेगा-अगर कोई पुरुष किसी औरत या लड़केके नाम अपनी जायदादका हिबा करे जिसे वह गलत तौर पर अपनी औरत या लड़का समझता था, तो ऐसा हिबा किया जाना कुछ तो इस वजेहसे मालूम होता है कि वह अपने रिश्तेदारको परवरिश करनेकी गरज़ ज़ाहिर करता है, और कुछ इस सबबसे कि उसकी प्रीतिका प्रवाह उसकी तरफ होगया है। ऐसी दशामें यद्यपि रिश्तेदारीकी कोई बात न भी हो तो जायज़ रहेगा। इसीतरहपर हिबा उस वक्त भी जायज़ करार दियाजायगा जब कि रिश्तेदारी हिबा करनेके वक्त कायम हो और जब हिबाके सम्बन्धसे उसे जायदाद पहुंचने का मौका पावे रिश्तेदारी कायम न रही हो। देखो-इंगलिश रिपोर्ट चेन्सरी 22 P. 619. नोट-जब किसी तहरीर ( लिखत ) के जरिये से किसी आदमी ने अपनी जायदाद दूसरे को दी हो तो जिस वक्त उस तहरीर से जायदाद पंहुचने का समय आवेगा तो विचार इस बात का किया जायगा कि उसने किस हैसियत से दी थी। और उसका मंशा क्या था । अगर उसकी मंशा से यह जाहिर होता हो कि किसी बातको मानकर दी थी तो उस बात के सिद्ध न होने पर उस तहरीर का असर भी नहीं होगा । और बादमें जायदाद जायज वारिस के पास पहुंचेगी ऐसा समझकर कि गोया उसने तहरीर की ही नहीं थी । लिखने वाले का मंशा उसकी तहरीर के शब्दों से और उसके आगे के बर्ताव से समझा जायगा। इसबात का सावित करना उस पक्षकार पर निर्भय है जिसके सावित न होने की वजह से उसका नुकसान पहुंचता हो । दफा २९६ दत्तकपुत्र जायदाद वापिस ले सकता है विधवा दत्तक लेने के लिये मजबूर नहीं की जासकती, उसका जब जी चाहे गोद लेवे मगर हक वारिसाना पतिके मरतेही फौरन पहुंच जाता हैं इसे वह रोक नहीं सकती हकवारिसाना तमाम हनोंके साथ जाता हैं मानो दत्तक केनेके अधिकारकी पैदाइशही नहीं हुई थी। मगर यदि कोई ऐसा अधिकार
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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