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________________ दफा २८१-२८२] हामुण्यायन इत्तक २६१ दफा २८२ द्वामुष्यायनकी रवाज नियोगसे चली है द्वामुष्यायनकी रवाज नियोग परसे चली मालूम होती है। प्राचीन ग्रन्थोंके देखने से पता लगता है कि, पहिले जब किसी के लड़का न होता था तो दूसरे पुरुषद्वारा गर्भाधान कराया जाता था, नियोगकी विधि अनेक स्मृतिकारों ने वर्णन की है। महर्षि मनुने कहा है कि सन्तान के न होने से स्त्री अपने देवर अथवा अन्य सपिण्डसे एक पुत्र सन्तान के वास्ते पैदा करे। नियोगके विषयमें स्मृतियों के कुछ वचन नीचे देते हैं । इसके पहले दफा ८७--८८ भी देखो। (१) मनु-देवरादा सपिण्डादा स्त्रिया सम्यङ् नियुक्तया । प्रजेप्सिताधिगन्तब्या संतानस्य परिक्षये ॥ विधवायां नियुक्तस्तु घृताक्तो वाग्यतो निशि । एकमुत्पादयेत्पुत्रं न द्वितीय कथंचन॥ द्वितीयमेके प्रजनं मन्यते स्त्रीषु तदिदः। अनिवृतं नियोगार्थं पश्यन्तो धर्म तस्तयोः ॥ विधवायां नियोगार्थे निवृत्तेतु यथाविधि । गुरुवच्च स्नुषावच्च वयातां परस्परम् ॥ मनुस्मृति अ०६ श्लोक ५६-६२ । देवरादिति। सन्तानाभावे स्त्रिया पत्यादिगुरु नियुक्तया देवरादन्यस्मादा सपिण्डादक्ष्यमाण घृताक्तादि नियमवत्पुरुषगमनेनेष्टाः प्रजा उत्पादयितव्याः। ईप्सितेत्यभिधानमर्थात्काऱ्यांक्षमपुत्रोत्पत्तो पुनर्गमनार्थम् । विधवायामिति विधवाया मित्यपत्योत्पादन योग्यपत्यभावपरमिदम् । जीवत्यपि पत्त्यौ अयोग्यपत्यादि गुरु नियुक्तो घृताक्त सर्व गात्रो मौनी रात्रावेकपुत्रं जनयेन्न कथंचिद्वितीयम् । द्वितीयमिति । अन्ये पुनराचार्या नियोगात्पुत्रोत्पादनविधिज्ञो अपुत्र एक पुत्र इति शिष्टप्रवादादनिष्यन्नं नियोग प्रयोजनं मन्यमानाः स्त्रीषु पुत्रोत्पादनं द्वितीयं धर्मतो मन्यन्ते । विधवायामिति । विधवादिकायां
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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