SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दफा २६६-२७० ] दत्तक लेनेका फल क्या हैं ( १ ) दत्तक और औरस पुत्रके भागमें धर्मशास्त्रकारोंकामत -- धर्म - शास्त्रोंमें दत्तक पुत्रका भाग विवेचन करनेमें मतभेद हैं कोई दत्तक पुत्र का भाग औरस पुत्रके होने पर बराबर मानते हैं और कोई न्यूनमानते हैं । मनु दत्तक पुत्रके भागको दूर चलकर स्वीकर करते हैं, कात्यायन, बौधायन आदि ने दत्तक का भाग कहा हैं परन्तु दोनोंमें कुछ अन्तर है, नीचें स्पष्ट बचनों को उद्धृत करते हैं जिनसे दत्तक का भाग साफ जाना जाता है यह स्मरण रहे कि जिन ग्रन्थोंका हम नीचे प्रमाण देते हैं वह बनारस स्कूल के अन्तर्गत हैं बङ्गाल में दायभाग माना जाता है । दाय भाग में यानी तिहाई ን हिस्सा दत्तकका स्वीकार किया गया हैं । बम्बई और मदरास में मान्य ग्रन्थों का विषय स्कूल के सम्बन्धमें पहले वर्णन कर दिया गया है देखो; प्रथम प्रकरण दफा २३. कात्यायन | उत्पन्ने त्वौरसे पुत्र तृतीयांशहराः स्मृताः । सवर्णा सर्वास्तु ग्रासाच्छादनभागिनः । " चतुर्थांशहराः स्मृता " इति - द्वितीय चरणे क्वचित्पाठः । वसिष्ठः - तस्मिश्चेत् प्रतिगृहीते औरस उत्पद्यते स चतुर्थ भागभागी | दत्तक मीमांसायाम् - तस्मिन् दत्तके प्रतिगृहीते यद्यौरस उत्पद्यत तदा दत्तकचतुर्थांशं लभेत न समांशमित्यर्थः । धर्मसिंधुदत्तकगृहणोत्तर मौरसेंजाते दत्तकचतुर्थांश भागी न समभागी । मिताक्षरायां तथोक्तेः । २८६ भावार्थ-- कात्यायनने कहा है कि जब दत्तक पुत्र लेनेके पश्चात् औरस पुत्र पैदा हो जावे तो दत्तक तीसरे हिस्सेका भागी होता है और औरस पुत्र दो हिस्सोंका । यह बात बंगाल स्कूलमें मानी गई है मगर इसी श्लोकके अन्तिम पदका पाठ ऐसा भी मिलता है, कि दत्तकपुत्र एक चौथाईका भागी होगा तथा औरस तीन हिस्सेका । यह पाठ बनारस स्कूल में माना गया है मंगर शर्त यह है कि वह दत्तकपुत्र सवर्ण होना चाहिये, और यदि असवर्ण होगा तो सिवाय रोटी कपड़ा के और उसे जायदाद में भाग नहीं मिलेगा । वसिष्ठी कहते हैं कि यदि दत्तकके पश्चात् औरस होजाय तो दत्तकको एक चौथाई भाग मिलेगा; एवं औरसको तीन चौथाई । दत्तक मीमांसाकारने भी यही कहा है कि दत्तकके बाद असली लड़का पैदा होनेपर दत्तकका भाग एक चौथाई और असली लड़केका भाग तीन चौथाई मिलेगा और यह साफ कहा 37
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy