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________________ दफा १७३ ] साधारण नियम क़ानूनमें मना नहीं किया गया इस लिये जायज़ माना जाय देखो -- मालप्पा पारप्पा हास्पी बनाम गङ्गाबा, गंगप्पा हास्पेटी 21 Bom. L. R. I7-27 ( 1918 ) इस विषय में और भी देखो दफा १७७. दफा १७३ जहां तकहो दत्तक सगोत्र सपिण्ड में लिया जाय शौनकने कहा है कि ब्राह्मणों को जहां तकहो सके अपने सपिण्डमें दत्तक लेवें और अगर सपिण्डमें न हो या नमिले तो असपिण्डमें लेवें अगर उसमें भी न हो या नमिले तो वह दत्तक नहीं ले सकता; शौनकका बचन यह है ww २१३ ब्राह्मणानां सपिण्डेषु कर्तव्यः पुत्र संग्रहः तदभावे सपिण्डे वा अन्यत्र तु न कारयेत् । शौनक यहां पर 'सपिण्ड' शब्द के अर्थमें शाकलने दूसरी युक्ति लगाई है उनका कहना है कि तथाच सपिण्डा भावे श्रसपिण्डः सगोत्रस्तदभावे भिन्न गोत्रोपि ग्राह्यः । सपिण्डके अभाव में असपिण्ड और सगोत्र के अभावमें दूसरा गोत्र भी ग्रहण किया जा सकता है इस विषयमें दत्तक चन्द्रिका तथा दत्तक मीमांसा का कहना यह हैः- सपिण्डापत्यक चैव सगोत्रज मथापिवा अपुत्रको दिजो यस्मात्पुत्रत्वे परि कल्पयेत् । समान गोत्रजाभावे पालये दन्यगोत्रजम् दौहित्रं भागिनेयश्च मातृ स्वसृ सुतं बिना । अन्यत्रतु न कारयेोदिति, ब्राह्मणातिरिक्तः क्षत्रियादिरसमानजातीयो दत्तको व्यावर्तते - सपिण्ड और सगोत्र से जो पुत्र दत्तक लिया जाता है उसे पुत्रत्व प्राप्त होता है यानी उसी पुत्रमें पुत्रका भाव रहता है इस कहने से यह मतलब है 'कि, सपिण्ड और सगोत्रके अतिरिक्त जो पुत्र गोद लिया जाय वह पुत्र चाहे नाम चलाने के वास्ते योग्य हो मगर उसमें पुत्रत्व भाव नहीं रहता, यह नियम द्विजों में लागू किया गया है शूद्रोंमें नहीं । जब दूसरे गोत्रसे गोद लियाजाय तो लड़की का लड़का, बहनका लड़का, माताकी बहन का लड़का नहीं लिया जा
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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