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________________ दत्तक या गोद [ चौथा प्रकरण सकता । और जब ऐसा विवाह अनुचित रिश्तेके सबबसे अयोग्य बताया गया तो अर्थ यह निकला कि उसका लड़का गोद नहीं लिया जासकता । दूसरी मिसाल चाचीकी बहनकी लीजिये, इसमें भी वही बात है क्योंकि चाचीका दरजा माके बराबर है और चाचीकी बहनका दर्जा भी वही हुआ इस लिये चाची की बहनके साथ विवाह अयोग्य है कारण ऐसे विवाहमें वर और बधूका रिश्ता मा और पुत्रका पैदा होता है इसीलिये उसके लड़के को भी दत्तक में वर्जित होना उचित होगा । ऊपरकी मिसालोंसे अच्छीतरह से समझ में यह आजावेगा कि इसबारे में दो बड़े सिद्धांत लागू किये गये हैं पहला-सीधे रिश्तेका । तथा दूसरा जो रिश्तासे रिश्ता पैदा होकर दर्जे की समानताका होता है । शास्त्रकारोंने सब बातें समझाकर आखीरमें साफ कह दिया है कि जिस स्त्रीके साथ रति योग सम्भव हो सकता है अथवा ऐसा कार्य्य शास्त्रानुसार अनुचित नहीं है उस स्त्रीसे पैदा हुआ लड़का गोद लिया जासकता है अन्यथा नहीं। यही बात दत्तक चन्द्रिकामें भी कही गई है कि ऐसा पुत्र गोद लिया जाय जिसमें पुत्रकी सादृश्यता होसके और उसकी मा के साथ गोद लेनेवाले पुरुषका या जिसके लिये गोद लिया जाता हो विवाह होना सम्भव होसके । और देखो मेन हिन्दुलॉ सातवां एडीशन पैरा १३५ ; घारपुरे हिन्दूलॉ पेज ८४ मुल्ला हिन्दूलॉ पेज ३८८ दफा ३६५: ट्रिवेलियन हिन्दूलॉ पेज १३३; रामकृष्ण हिन्दूलॉ पेज १२०, माण्डलीककी रायके फैसले 'देखो: - मीनाक्षी बनाम रामनाद 11 Mad. 49; भगवानसिंह बनाम भगवान सिंह 26 I . A. 153; S C. 21 All. 412. २१२ मण्डली कहते हैं कि, दत्तक चन्द्रिका, दत्तक मीमांसा, संस्कार कौस्तुभ, धर्म सिन्धु, और दत्तक निर्णयमें उपरोक्त सिद्धांत के अनुसार मनाही की गई है यह सब ग्रन्थ शौनक की उपरोक्त वाक्य का प्रतिपादन करते हैं । सन् १९१८ ई० में इसी क़िस्मका एक मामला बम्बई हाईकोर्टके सामने पेश हुआ। मामला यह था कि जायदाद भीमप्पा की थी जो सन् १६०३ ई० मैं अपनी विधवा इंड़ावाको छोड़कर मर गया । सन् १६०५ ई० में विधवाने गङ्गाप्पाको पति के लिये गोद लिया पीछे दत्तक पुत्रने स्थावर जायदाद मालप्पा के हाथ बेचदी, विधवाने अपने पतिके बापके भाईका लड़का गोद लिया था ( भाईका दरजा होता है ) सन् १९१३ ई० में भीम अप्पाके भाई की विधवाने दावा किया कि गोद नाजायज़ है और जायदाद मुझे मिले । प्रारंभिक अदालत ने गोद नाजायज़ माना और जायदाद विधवाको दिलाई. अपील में फैसला बहाल रहा दोनों अदालतोंने फैसलेमें शौनकके इस बचनका आधार माना 'पुत्रच्छायावः' कहा कि बापके भाईका पुत्र इस लिये गोद नहीं होसकता क्योंकि यह भाईके दरजे में है हाईकोर्ट में जब मामला पेश हुआ तो सब प्रमाणों के माननेपर जजोंने कहा कि यद्यपि शास्त्र विरुद्ध है किंतु
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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