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________________ दत्तक या गोद [चौथा प्रकरण हो जाती है और विधवा होनेकी हालत में अपनी परवरिश का दावा उसी खानदान पर रखती है और वही खानदान विधवाकी परवरिशका ज़िम्मेदार है। हर ऐसे खानदान में एक अफसर खानदान ज़रूरत के अनुसार होना आवश्यक है। इस मुकदमे में विधवा ने देवर की रजामन्दी न लेकर दूर के सपिण्डकी मञ्जुरी से दत्तक लिया है इस लिये नाजायज़ है। अदालत मदरासमें यह स्वीकार किया गया है कि जहां पर पतिका परिवार हर एक दूसरेसे अलहदा हो तो फिर किसी एक मेम्बर की रजामन्दी काफी होगी मगर विधवा पर लाज़िम है, कि वह हर एक सपिण्ड के पास अपनी बातको निवेदन करे; देखो-पराशर बनाम रङ्गराज 2 Mad 2025 26 Mad. 627 आगे हाकिम ने यह भी फरमाया कि यह तो सभी मानते हैं कि मज़दीकी सपिण्डोंकी रज़ामन्दी दूरके सपिण्डों की रजामन्दी से ज़रूरी और योग्य है । इस मुकदमे में ऐसी रज़ामन्दी का पता नहीं लगता और जो कुछ अदालतके सामने है वह इतनाही है कि महादेवी ने यह कहकर कि उसके पास पतिकी आज्ञा है पिदाकमड़ीके ज़मीदारसे लड़का मांगा और उसे दत्तक लिया और कोई बात ऐसी ज़ाहिर नहीं होती कि पिदाकमड़ी के ज़मीदारने कभी यह झ्याल कियाहो कि विधवा को पतिने दत्तक लेने की आशा दी थी। विधवाको दत्तक लेने का अधिकार ऐसी सूरतमें नहीं रहा जबकि उसके देवर की रज़ामन्दी न थी देखो-करुणाब्धि बनाम रतनामैएर 7 I. A. 173; S. C. 2M ad. 270. बेङ्कट लक्षिमण बनाम नारासाया 8 Mad. 545; इस मुकदमेमें विधवा ने झूठी बात कहकर कि उसे पतिकी आज्ञा गोद लेने की है सपिण्डोंकी मञ्जूरी प्राप्त कर ली थी जो शामिल शरीक रहते थे । जुडीशल कमेटी ने दत्तक नाजायज़ कर दिया; कहा कि विधवाने चालकीसे मञ्जूरी प्राप्त की थी। (३) जब गोदकी मजूरी अपने लाभके लिये दी गयी हो - कुछ ऐसे मुकदमें भी हैं जिनमें वाजबी सपिण्डों की मजूरी होनेपर भी, इस बुनियाद पर नाजायज़ कर दिये गये कि सपिण्डोंने मजूरी अपने लाभके लिये दी थी, 7 I. A. 1737 2 Mad. 270; 2 Mad, 2017 इसके विरुद्ध लेखो--23 Mad. 486. (४) ससुर या उत्तराधिकारियोंकी रज़ामदी दरकार है-जो विधवा जायदादमें अधिकार न रखती हो और जिसका पति मरने के समय अपने कुटुम्बियों से जुदा न रहता हो उस विधवाको ऐसा अधिकार नहीं होगा कि पतिकी प्राशा के बिना या ससुर या शरीक सपिण्डों की रजामन्दी के बिना दत्तक ले सके; देखो--6 Bom. 498; 15 Bom. 110; 29 Bom. 410; 31 •Bom 3733 34 I.A. 107. . . . .
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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