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________________ दत्तक या गोद [ चौथा प्रकरण बिना कारण बताये हुए ही रजामन्दी देने से इन्कार करने की अवस्था में यह आवश्यक नहीं है कि इस प्रकार की अस्वीकृति अनुचित ही हो, जब तक कि कारण न तलब किया जाय और उसके बताने की इन्कारी न प्रगट हो जाय । ए० ब्रह्मप्पा बनाम सी० रत्तप्पा 83 I. C. 59, AIR 1925 Nag. 1 ( F. B. ) दफा १४४ बटे हुए कुटुम्ब में बिना आज्ञा पतिके दत्तक लेना बटे हुए खानदान में जब पति मरा हो और विधवा को पति की जायदाद बरासतमै अलहदा मिली हो वहांपर किसी क़ायदे के क़ायम करने के लिये बहुत ही कठिनता होगी । जब पतिने गोद लेनेका अधिकार न दिया हो तो बम्बई और मदरास स्कूलमें विधवा सपिण्डोंकी मञ्जुरीसे दत्तक ले सकती है, मगर नज़दीकी सपिण्डों की रजामन्दी आवश्यक होगी जिनका दत्तक से इक़ मारा जाता हो । अगर दूसरे सपिण्डों की रजामन्दी नहीं प्राप्त की गयी हो तो हर्ज़ नहीं होगा; यानी सिर्फ इस वजह से गोद नाजायज़ नहीं हो जायगा । नज़दीकी सपिण्डोंकी सब की रजामन्दी होना चाहिये । सपिण्डों की रजामन्दीका आधार यह माना गया है कि स्त्रियोंमें खुदमुखतारी की योग्यता नहीं होती । बम्बई के एक मुक़द्दमेमें यही निश्चित किया गया है; देखो - बिट्ठोबा बनाम बाबू 15 Bor. 110. १६२ उदाहरण-- ( १ ) जय बटे हुए खानदानमें रहता है । एक लड़की छोड़ कर मर गया । उसकी विधवा लड़का गोद ले सकती है । लड़कीका कोई हक़ नहीं है जबतक विधवा जीती रहे । अगर विधवा बिना दत्तक लिये मर जाय तो लड़की का हक़ पैदा होगा । (२) जन एक विधवा लक्ष्मी बाई को छोड़ कर मर गया और यह अधिकार भी दे गया था कि वह दो लड़के एकके बाद दूसरा गोद लेवे । लक्ष्मीबाई ने पति के मरने पर प्रधुमन को गोद लिया । गोद लेने की तारीख से १२ वर्ष के बाद प्रद्युमन बिन ब्याहा मर गया । अब सब जायदादकी मालकिन बहैसियत दत्तक पुत्रकी माता के लक्ष्मी बाई फिर हुई । तब उसने दूसरा लड़का गोद लिया । माना गया कि दत्तक जायज़ है; देखो - रामसुन्दर बनाम सरबनी दासी ( 1874 ) 22 W. R. 121. ( ३ ) अज ने अपने मरने के समय एक लड़का और अपनी विधवा को छोड़ा तथा उसने विधवाको यह अधिकार दिया था कि अगर लड़का मर जाय तो गोद लेवे । अज के मरमेपर सब जायदाद उसके लड़के को पहुँच गयी । पीछे वह लड़का अपनी विधवा छोड़ कर मर गया जिसका नाम जमुना बाई था लड़के के मरनेपर सब जायदाद बहैसियत वारिसके उसकी विधवा जमुना बाईको पहुँची। पश्चात अजकी विधवा ने पति के लिये एक लड़का गोद लिया।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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