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________________ एफा १३७-१३८] पतिकी आज्ञासे विधनाका दत्तक लेना १८५ .. तय हुआ कि मामले की सूरतमें सरकारी जन्ती न थी और यदि सरकारी ज़ब्ती होती तो भी उसके कारण, विधवा के दत्तक लेने के अधिकार में कोई बाधा न आसकती थी-- ___ यह भी तय हुआ, कि ग्रांट में दत्तक लेने की मनाही नहीं है और उस म किती प्रकारकी ऐसीही बात नहीं है जो दत्तक पुत्रको वारिस होनेसे रोकती हो किन्तु गोद लेने के कारण ग्रांट में वर्णित शर्तों और प्रबन्ध के सम्बन्धमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया जासकता । महाराजा कोल्हापुर बनाम एस०सुन्दरम् अय्यर, 48 Mad. 1. A. I. R. 1925 Mad. 497. जब विधवा बिना अपने पति की स्पष्ट आज्ञा के या. शेष हिस्सेदारों की रजामन्दीके कोई दत्तक लेती है तो वह नाजायज़ होता है और उसे संयुक्त परिवार की जायदाद में हिस्सा पाने का अधिकार नहीं होता। बाबना संगप्पा बनाम परब निङ्ग बासप्पा A. I. R. 1927 Bom. 68. जैन-विधवा विना अपने पति या सपिण्डों की रजामंदी के गोद नहीं ले सकती । गाटेप्पा बनाम इरम्मा A. I. R. 1927 Mad: 228. (ग) पतिकी आज्ञासे विधवाका दत्तक लेना दफा १३८ पति के लिये केवल विधवाही दत्तक ले सकती है। बङ्गाल और बनारस स्कूलके अनुसार पतिकी प्राशासे विधवा दत्तक ले सकती है, यदि उस आशामें दत्तक लेने की योग्यता हो; देखो--दफा ११८ पैरा २ और ३ हिन्दू धर्मशास्त्रानुसार पतिके अङ्गका बायां भाग उसकी अर्द्धागिनी स्त्री मानी गई है। इसीसे यज्ञादि कर्मों में स्त्रीको शामिल किया है। दत्तकमें इसका नतीजा यह है कि पतिके मरजानेपर उसका बायां आधा अङ्ग (विधवा) जीवित रहता है । इसीलिये कानूनमें गोद लेनेका अधिकार केवल स्त्रीको पति दे सकता है, दूसरे किसीकोजहीं-देखो दफा १३१ । इसी उद्देश्यपर पतिके मर जानेपर भी उसकी विधवा उसके लिये दत्तक ले सकती है। विधवा को यह अधिकार नहीं है कि वह अपना अधिकार दूसरे को दे दे या उसमें किसी को शामिल करे । बम्बई और मद्रासमें विधवा सपिण्डों की मंजूरी से गोद ले सकती है चाहे, पतिकी श्राक्षा न हो। वहां पर भी दत्तक लेने का काम विधवाही पर निर्भर है। विधवा अपने अधिकार को खुद ही काम में ला सकती है-अमृतलाल बनाम सुरनमई 25 Cal. 622; 27 Cal. 996. 24
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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