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________________ १२० विवाह [दूसरा प्रकरण प्रस्ताव का अनुवाद नीच दिया जाता है ८ - इस सनातन धर्म महासभा की राय में (हिन्दू) जाति को शरीर और धर्म से दृढ़ बनाने के लिये यह परमावश्यक है कि विवाह हो चुकने पर भी तब तक परस्पर प्रसङ्ग ( दाम्पत्य सम्बन्ध ) न होना चाहिये जब तक कि लड़की का १६वां वर्ष न लग जाय । ___यह युक्ति इस प्रकारकी पहलीही चेष्टा है और मेरी राय यह है कि इस मामले में वह मार्ग, जिससे कि ज़रा भी रुकावट पड़ती हो, उन सब लोगों को इस्तयार करना चाहिये जो उसकी सफलता चाहते हैं । कम से कम आयु की कैद निर्धारित करने से ऊँची. आयु पर वाध्य करने वाला प्रस्ताव ( Binding effect ) किसी प्रकार नहीं पड़ता। उदाहरण के तौर पर हम देखते हैं कि कई पाश्चात्य देशोंमें सम्मत देने की आयु ( Aget f consent ) उस आयु से बहुत कम है जिसमें प्रायः विवाह हुआ करते हैं । अतः मेरी समझ में यही उचित है कि, इतने मनुष्यों के विचारोंको न भूलना चाहिये और लड़कियों की विवाहोचित अयु कमसे कम १२ वर्ष निर्धारित करनी चाहिये। यदि परस्पर प्रसङ्ग में किसी कानूनी सहायता ( रक्षा ) की आवश्यकता समझ पड़े तो सम्मति देने की आयु (Age of consent ) को और बढ़ा देने से लड़कियों को ऐसी सहायता मिल सकती है । हां, यह तर्कना उठ सक्ती है कि कानून ताज़ीरात हिन्दका सम्मति दे सकनेका क्लाज़ रद हो गया है। परन्तु यह भली भांति समझ लेना चाहिये कि यदि किसी सामाजिक कानून को सफल बनाना है तो वह ऐसा कड़ा न होना चाहिये कि जिससे अधिक संख्यक लोगों को वह अमाननीय हो जाय । अतः मैं आशा करता हूं कि वे लोग, जो कि लड़कियों की कम से कम विवाहोचित आयु को बढ़ाकर १२ सालसे अधिक कर दी जानेके पक्ष में हैं, इस ( बृद्धि ) की श्राड़ में छिपी हुई कठिनाइयों को समझ लेंगे और लड़कियों की कमसे कम विवाहोचित आयु को १२ वर्ष निर्धारित करके सन्तष्ट हो जायंगे। इस संशोधित रूप में काननके इस टुकड़ेकी सफलता का विस्तार (परिमाण ) देखनेके लिये हमको प्रतीक्षा करनी चाहिये।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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