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________________ • दफा ६७-६८] वैवाहिक सम्बन्ध - १६ किन बातोंके होनेसे अदालत विवाहको जायज़ मानेगी ? जब यह साबित किया गया हो कि विवाह होनेके पश्चात् दोनों यानी पतिपत्नी एक साथ रहे, अपनी जातिमें शामिल रहे और जातिबालोंके ज़रूरी रस्मोंके मौक़ों पर वह दोनों शरीक किये गये, और जातिवाले तथा अन्य लोग उन्हें स्त्री, पुरुष मानते थे जातिवाले खानपानमें बराबर शरीक करते थे, ऐसा साबित होनेसे अदालत विवाहके जायज़ होनेका मज़बूत सुबूत मानेगी-देखो मौजीलाल बनाम चन्द्रवती 38 Cal. 700; 38 I. A. 122. जब कोई औरत किसी पुरुषकी निगरानी और रक्षामें बहुत दिनोंसे रहती हो. और दोनों प्रायः एक साथ रहा करते हों और उस औरतके बच्चों को उस परुषने अपने बच्चे मानेहों तो अदालत यह मान लेगी कि वह दोनों स्त्री पुरुष थे और विवाह जायज़ था लेकिन अदालतका यह मानलेना इकदम रद्द कर दिया जा सकता है जब यह साबित कर दिया जाय कि दर असल उन दोनोंका जायज़ विवाह नहीं हुआ था, देखो-चिल्लामल बनाम रंगनाथम् 34 Mad. 277. दफा ६८ सगाई या मंगनी (१) विवाह होनेकी बात पक्की हो जानेको सगाई कहते हैं । यह विवाह नहीं है विवाह तब कहा जाता है जब विवाहकी कृत्ये सब पूरी हो जायं तब विवाह टूट नहीं सकता । सगाई या मंगनी या फलदान तोड़ा जा सकना है देखो--उम्मैद बनाम नगीनदास 7 Bom. 122.. अगर सगाई तोड़ दी गयी हो तो अदालतमें विवाह करापाने का दावा दायर नहीं हो सकता देखो गनपतिसिंह का मामला I Cal. 174 इस मामले में अदालतने कहा कि सगाई तोड़ने पर हर्जेका दावा हो सकता है (अगर कुछ वास्तवमें हुआ हो) मगर ऐसे हर्जेका दावा उस सूरतमें होगा जब कि सगाई उचित और कानूनी हो और किसी उचित कारणके बिना तोड़ दी गयी हो देखो-मूलजी ठाकरसी बनाम गोमती । Bom. 412; 16 Bom. 673. पुरुषोत्तमदास त्रिभुवनदास बनाम पुरुषोत्तमदास मंगलदास 21 Bom. 23 के मामले में यह सूरत थी कि सगाई मुद्दालेह की लड़कीसे हुई थी, मुद्दईका दावा यह था कि अमुक, मुद्दतके अंदर यदि मुद्दालेह अपनी लड़कीका विवाह मुद्दईसे न कर दे तो मुद्दई को सगाई तोड़ देनेका अधिकार होगा, यह कहा गया था कि सगाई नाजायज़ है। अदालतने मुद्दईका दावा डिकरी किया और कहा कि, हिन्दू लड़के और लड़कियोंका विवाह एक ऐसा कंट्राक्ट है जिसके दोनों पक्षोंके मातापिता आपसमें तय करते हैं । लड़के और लड़की की मंजूरी उसमें नहीं होती यही बात सगाईकी भी है और ऐसे कंट्राक्ट का पूरा किया जाना विवाहके समय लड़कीकी रज़ामंदीपर है।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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