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________________ दफा ५४ ] विवाह में वर्जित सपिण्ड ( २ ) जैसा कि ऊपर फदा ५३ के दूसरे सिद्धांतमें बताया गया है कि अगर लड़की अपनी मांके पूर्वजोंकी पांच पीढ़ीके अंदर हो तो विवाह नहीं हो सकता देखा पी १३ से लेकर पी १७ तक यह माताके पांच पितृपूर्वज हैं; इसकी गणनामें मातासे शुमार नहीं किया जायगा क्योंकि माता के पितृपूर्वज माता पिता (नाना ) से शुरू होते हैं । ६६ (३) जैसा कि ऊपर दफा ५३ के तिसरे सिद्धांतमें कहा गया है कि अगर लड़की अपने बापके तीन खास बन्धुओंकी सात पीढ़ीके अंदर होतो विवाह नहीं हो सकता देखा ल १ ल २ और ल ३ यह पितृबंधु हैं अथात् ल १ पिताके बापकी बहनका लड़का, ल २ पिताकी माकी बहनका लड़का और ल ३ पिताकी माके भाईका लड़का है, वरके इन तीनों पितृबन्धुओकी सात पीढ़ीके अन्दर किसी कन्याका विवाह नहीं हो सकता । ( ४ ) जैसा कि ऊपर दफा ५३ के चौथे सिद्धांत में कहा गया है कि अगर लड़की अपनी माताके तीन खास वन्धुओंकी पांच पीढ़के अन्दर हो तो विवाह नहीं हो सकता देखा ल ४, ल ५, ल ६, मातृबन्धु हैं अर्थात् ल ४ नानाकी बहनका लड़का, ल ५ माताकी माकी बहनका लड़का और ल ६ माताकी माके भाई का लड़का है इन तीनों मातृबन्धुओंमेंसे किसी एककी पांच पीढ़ीके अन्दर किसी लड़कीका विवाह नहीं हो सकता अर्थात् ल ४ के पूर्वज हैं पि १४ सेपि १७ और ल ५, ल ६ के पूर्वज हैं पि १८ से, पि २० इत्यादि । ल ६ का बाप है; ल २ | ल ६ के पूर्वज हैं ल २ और पि १८ से १६ तक तीन खास वन्धु । ऊपर विवाह सपिण्डों का क्रम बंगालस्कूलके अनुसार बताया गया । रघुनन्दन भट्टके बनाये उद्वाहत्तत्व नामक ग्रन्थके आधारपर और बंगाल प्रांत में माने हुए ग्रंथों के अनुसार ऊपरके सिद्धांत माने गये हैं । डाक्टर बनर्जी के लॉ आफू मेरेज, तीसरा एडीशन पेज ६५-७२ में कहा गया है कि जो लड़की ऊपरके दरजोंके अन्दर हो और वरके गोत्रसे तीन गोत्र दूर हो तो विवाह हो सकता है; - दफा ५४ का दूसरा उदाहरण | दफा ५४ मिताक्षरास्कूलके अनुसार विवाह में सपिण्ड कन्या ( १ ) मिताक्षरा के अनुसार विवाहका सपिण्ड अधिक विस्तृत है, दफा ५१ में कहे गये वचनोंके अनुसार सपिण्ड पितासे सात और मातासे पांच पीढ़ीके समाप्त होनेपर समाप्त हो जाता है । कौस्तुभ, मदनपारिजातमें इसका पूरा विस्तार देखो, निर्णयसिंधु और धर्मसिंधुमें भी इसपर अच्छा विवेचन किया गया है । मिताक्षराके अनुसार विवाहके विषयमें सपिण्ड कन्या जिन ख़ास सिद्धांतों से विचारकी जाती है वह दफा ४७ से५१ तक ऊपर बताये जाचुके हैं उनका सारांश नीचे देते हैं जो विवाह में वर्जित माने गये हैं ।
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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