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________________ दफा ४३-४५ ] विवाहके भेद आदि दफा ४३ विवाहका विषय दो भागों में बटा है विवाहका विषय दो भागों में विभक्त हो सकता है, एक तो यह कि, १ क़ानूनमें विवाहके जायज़ माने जानेके लिये विवाहमें किन बातोंका होना परमावश्यक है, ( देखो दफा ४४ ) २ दूसरे यह कि विवाह करने वाले स्त्री पुरुष जायज़ विवाह करने के योग्य हैं या नहीं ( देखो दफा ४५ ) ५३ दफा ४४ विवाह जायज़ माने जानेकी शर्तें विवाह विषयमें सदा दो बातें देखी जाती हैं एक यह कि घर और कन्या एकही जाति के हों; दूसरी यह कि, वर और कन्या एकही कुटुम्बके न हों । देखो - याज्ञवल्क्य विवाह प्र० ५२- विप्लुतब्रह्मचर्यो लक्षण्यां स्त्रियमुदहेत् अनन्य पूर्विकां कांता मसपिण्डां यवीयसीम् । घर जिसका ब्रह्मचर्य भंग न हुआ हो अच्छे गुणवाली स्त्रीको पत्नी बनाये मगर शर्त यह है कि वह किसी दूसरे पुरुषसे सम्बन्ध न रखती हो, रूपवती हो, सपिण्ड न हो और अपने से उमरमें और शरीरमें छोटी हो । ' सपिण्ड न हो ' इससे मतलब यह है कि, एकही पूर्वजोंसे न पैदा हुई हो और न एक ही कुटुम्बकी हो विस्तारसे देखो दफा ४७-५४. दफा ४५ जायज़ विवाह के योग्यता की शर्तें ( १ ) जिस कन्या के साथ विवाह किया जाय वह उसी जातिकी हो, परंतु कोई स्थानीय रसमके अनुसार शूद्रों में भिन्न जातियोंके परस्पर विवाह हो सकता है; देखो मेलारमनू दियाल बनाम तानूराम बामन 9 W. R. 55212 P. C. R 267; 15 Cal. 708. लिङ्गायतों में उनके खाजसे तथा हिन्दूलों के अनुसार भी भिन्न उपजातियों के परस्पर विवाह नाजायज़ नहीं है । जो कोई नाजायज़ बताये उसे साबित करना होगा कि किसी अतिप्राचीन रवाजसे ऐसा विवाह वर्जित है। देखो फक़ीर गौदा बनाम गंगी 22 Bom. 277. 'पांचाल' और 'कुरवार' शूद्रोंकी उपजातियां हैं इन दोनोंके परस्पर विवाह जायज़ हैं अगर कोई नाजायज़ बताये तो उसे साबित करना होगा कि किसी अतिप्राचीन रवाजसे वह वर्जित है; महंतावा बनाम गंगावा 33 Bom. 693; 11 Bom. L. R. 822. हिन्दूलॉ के अनुसार जिन शर्तोंसे विवाह जायज़ माना जा सकता है उसके सिवाय यदि किसी जातिमें विवाहको जायज़ बनानेके लिये कोई और
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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