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________________ १०४० धार्मिक और खैराती धर्मादे [सत्रहवां प्रकरण शिवायतके हक प्राप्त हों। मामला यह था कि उमाचरणदे ने हिग किया कि देवमूर्तिमें लगी जायदादका मैं शिवायत जीवन भर रहूंगा पीछे मेरी बड़ी स्त्री रमणकुमारी दासी हो और उसके मरनेपर मेरी दूसरी स्त्री गौरी कुमारी दासी हो इत्यादि । सरकारी लगान वसूलीका दावा उमाचरणदे के मरनेपर रमण. कमारी दासौदेने किया, उज्र यह था कि वह दावा नहीं कर सकती क्योंकि लगान उमाचरणदे के जीवमके समयका था। तय हुआ कि वह दावा कर सकती है। जो शिवायत होगा वह पहलेके रुपया वसूलीका दावा कर सकता है, देखो-1923 Ail. I. R. Cal. 30. (8) कर्ज और इन्तकाल -धर्मादेके मेनेजरको अधिकार है कि धर्मादे की पूजा पाठ, मन्दिरकी मरम्मत,या मन्दिर सम्बन्धी दूसरे स्थानों की मरम्मत या मुकद्दमेकी पैरवीके लिये और ऐसे ही धर्मादेके अन्य उद्देशोंके लिये जो कि उचित और आवश्यक खर्च है रुपया कर्ज ले। अगर रुपया नहीं है तो जितनी ज़रूरत हो उसके अनुसार वह जायदाद बेच दे. रेहन कर दे या दूसरा इन्तकाल कर दे, इस विषयमें उसका अधिकार ठीक वैसा ही है जैसाकि एक बच्चा वारिसके मेनेजर' का होता है; देखो-4 I. A. 527 2 Cal. 341-351; 36 I. A. 148; 36 Cal. 1003; 14 C. W. N. 1; 2 I. A. 145314 B. L. R. 4503 23. W. R. C. R. 2533 34 Cal. 249; 11 C. W. N. 261; 4 I. A. 52; 2 Cal. 341; 24 Cal. 77; 25 All. 296; 31 Mad. 47, 34 Mad. 535. गहीधर या मठके महन्त द्वारा कर्ज-जब किली गद्दीधर या मठके महन्त के खिलाफ़ किसी ऐसी नालिशमें, जो उस महन्तके पूर्वाधिकारी द्वारा किये हुए कर्जके सम्बन्धमें हो, यदि उस क़ज़ की पाबन्दी उस मठकी जायदाद पर न होती हो, तो कोई डिकरी, उस गत मठके महन्तके उस सरमायेके ऊपर, जो मुद्दालेहके अधिकारमें हो, नहीं दी जा सकती, जब तक कि मुदई यह न साबित करे कि गत महन्त उस मठकी आमदनीकी बचतले, कुछ रक्कम अपने लिये रखता था, जोकि उसका व्यक्तिगत सरमाया है--सुन्दरप्पायर बनाम चोकालिङ्गाथम्बिरान 186 I. C. 291; A. I. B. 1925 Mad. 1059. ____12. W. R. C. R. 293. में कहा गया कि मेनेजरको उतनाही अधि. कार होता है जितना कि सीमावद्ध स्त्री मालिक का होता है। और जनरंजन बनर्जी बनाम अधूर मनीदासी 13. C. W. N. 805 वाले मामले में अदालतने यह माना कि किसी तालाबको पाट का कोई लाभ उठाना, काफ़ी ज़रूरत नहीं है इसलिये ऐसे मतलचसे यदि इन्तकाल किया गया हो नाजायज़ है। यदि असली मेनेजरने नेकनीयतीसे धर्मादे के उचित लाभ के लिये कोई क़र्ज़ लिया हो तो वह पहले पहल ज़ाहिरा तौरसे ऐसा माना जायगा कि जैसे
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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