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________________ १०३८ धार्मिक और खैराती धर्मादे [ सत्रहवां प्रकरण (३) मेनेजरके जो साधारण अधिकार होते हैं वही धर्मादेके मेनेजर के होते हैं । मेनेजर धर्मादे की जायदादकी ज़मीन रवाजके अनुसार पट्टे पर उठा सकता है और उचित समयके लिये पट्टा दे सकता है, देखो--13 M. I. A. 270; 13 W. R. P.C. 18 अगर वह अनुचित मुद्दतके लिये पट्टा दे तो वह पट्टा उसी समय तक जारी रहेगा जबतक कि वह मेनेजर बना रहेगा, देखो-अहूं मिसर बनाम जगुरनाथ इन्द्र स्वामी 18 W. R. C. R. 439; 20 W. R.C. R. 471; 19 Bom. 271. (४) स्थायी पट्टा--जिन सूरतोंमें कि धर्मादे की जायदाद का इन्तकाल जायज़ माना जा सकता है उन्हीं सूरतोंमें महन्त या शिवायत या मेनेजर, धर्मादेकी जमीनका स्थाई पट्टा दे सकता है. देखो--अभिराम गोस्वामी बनाम चरणनन्दी 36 I. A. 148; 36 Cal. 1003; 14 C. W. N. 1; 11 Bom. L. R. 1234; 13 C. W. N. 805; 4 Ben. Sel. R. 151; 12 W. R. C. R. 299; 7 B. L. R. 621; 15 W. R. C. R. 2289 22 Cal. 9893 28 Mad. 391; 34 Mad. 535; 19 Mad. 485. . मंदिरके पुजारी, शिवायतका अधिकार हमेशा के लिये पट्टा देने का हैजब पट्टा देने और लेने वाले दोनों मर गये हों तो माना जायगा कि पट्टा हमेशाके लिये था। ज़मीनका किराया देते रहनेपर पट्टे की ज़मीन बेदखल नहीं होगी। मामला यह था कि अहमदाबादके दिल्ली फाटकके पास कुछ ज़मीन महाराजा सुलतानसिंहने, श्रीरनछोड़जी के वास्ते दी थी २२ फरवरी सन् १५२४ ई० को यह ज़मीन पट्टे पर उठा दी गयी शर्त यह थी कि जो अधिकार पट्टा लिखने वालेको प्राप्त है वही पट्टा लेने वालेको होगा । किराया, मंदिर में पूजा करने वाले महात्मा जी को देने की बात भी लिखी थी। पट्टा देने वालेके खानदान वालोंने बेदखल करना चाहा तब प्रिवी कौन्सिलने तय किया कि १०० वर्ष पट्टा दिये हो गये, देने व लेने वाले मर गये अब यही माना जायगा कि पट्टा हमेशाका था और जायज़ तरीकसे दिया गया था। उन्हें देने व लेने का अधिकार था, देखो-42 M. L. J. 501; 29 C. W. N 473; 20 A. L.J. 371; 24 B. L. R. 574; 66 I. C_162; 19 Mad. 485. यदि अनुचित रीतिसे ऐसा पट्टा दिया गया हो तो ऐसे पट्टेके रद्द किये जानेके दावाकी तमादीके लिये, देखो-कानून मियाद एक्ट नं०६ सन् १६०८ दफा १-१३४. इसमें कहा गया है कि " ट्रस्ट या रेहनकी हुई गैरमनकूला जायदाद पर फिर कब्जा करने का दावा या वैसी जायदाद ट्रस्टीने या उस आदमीने जिसके पास रेहनकी हुई जायदाद हो, इन्तकाल कर दिया हो तो उसपर फिर कब्जा पानेका दावा, इन्तकाल करने की तादीखसे बारह १२ वर्ष के अन्दर होना चाहिये" इसी विषयमें और भी देखो-अभयराम गोस्वाभी बनाम श्यामाचरण नदी (1909) 36 I. A. 148; 36 Cal. 1003;
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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