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________________ दफा ६३४-८३५] धर्मादेकी संस्थाके नियम १०२२ का इरादा था, ऐसी दशामें यह माना गया कि जो गांव देवता के लिये खरीदा गया था वह ठीक है, मंदिर बनाना आवश्यक कार्य नहीं है, देवताका होना आवश्यक है, देखो-46 All. 130; 78 1. C. 1018. दफा ८३५ खण्डित या खोई हुई मूर्ति ___ अगर मूर्ति, फटजाय, टूटजाय, अङ्ग भङ्ग होजाय, बिगड़ जाय यां चोरी चली जाय तो उसकी जगहपर शास्त्रानुसार दूसरी मूर्ति स्थापितकी जा सकती है। यदि देवमूर्ति किसी अपवित्रतासे भृष्ट कर दी गई हो तो उचित बिधानके साथ दूसरी मूर्ति प्रतिष्ठितकी जासकती है, यदि ऐसी अपवित्रता हो जो किसी विशेष विधानसे वही मूर्ति शुद्धकी जा सकतीहो तो शुद्ध की जासकती है । शिवलिङ्ग देवमूर्तिका स्थानच्युत होना जैसे मन्दिरसे बाहर लेजाना कुछ मामलों में भृष्ट होना माना गया है। जब पहली मूर्ति ज्यों कीत्यों निर्दोष मौजूद हो तो नई मूर्ति कदादि नहीं बिठाई जासकती। मूर्ति एक कानूनी व्यक्ति है और शिवामत (पुजारी) उसका प्रतिनिधि है देवमूर्ति नालिश कर सकती है और उसके खिलाफ नालिश की जा सकती है-यह जङ्गम सम्पत्ति नहीं है फलतः, शिवायत वसीयतनामे द्वारा उसका इन्तकाल नहीं कर सकता--मूर्ति, शिवायत द्वारा अपनी इच्छा प्रगट करती है-प्रमथनाथ बनाम प्रद्युम्न कुमार 52 Cal. 809; 30 C. W. N. 253 52 I. A. 245; 23 A. L.J. 537; 41 C. L. J. 551; 87 I.C. 3053 22 L. W. 4925 (1925) M. W. N. 431; 20. W. N. 557,27 Bom. L. R. 1064; A. I. R. 1925 P.C. 139; 49 M.L.J. 30 (P.C.) - यदि देवमूर्ति ऐसी प्राचीन हो कि जो ईश्वर या किसी महात्मा, या किसी सुर या असुर आदिकी स्थापितकी हुई कही जाती हो या घरानेके प्राचीन किसी पूर्वजकी स्थापनकी हुई वर्णनकी जाती हो या जब कि उस मूर्तिका प्राचीन स्थापनकाल अज्ञात हो तो उस मूर्तिके केवल फट जाने, टूट जाने, अङ्ग भङ्ग हो जाने, बिगड़ जानेसे उस प्राचीन मूर्तिके स्थान पर नयी मूर्ति नहीं बिठलाई जासकती। अगर प्राचीन देवमूर्ति मरम्मतसे ठीक हो सकती हो तो भी नयी मूर्ति नहीं स्थापितकी जासकती। __ यदि पुरानी देवमूर्तिकी जगह नई मूर्ति बिठलाना सब तरह पर उचित हो किसी तरहपर भी काम न चल सकता हो तो विधिवत शीघ्र बिठलाई जाय क्योंकि शास्त्रका वचन है कि खंडित मूर्तिकी पूजा नहीं हो सकती देखो--जी, सी, सरकारका हिन्दूलॉ3 ed. P. 441; 7 C. L. R. 278-281. जो मूर्ति अभी स्थापित नहीं है उसकी स्थापनाके लिये भी पहले एक दूस्ट बनाके उसे मूर्ति स्थापित करने की हिदायतकी जासकती है, दूस्ट ज़यानी या लिखित वसीयत द्वारा कायम हो सकता है, देखो-37Cal. 128 33 All. 253.
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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