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________________ १०२२ धार्मिक और खैराती धर्मादे [ सत्रहवां प्रकरण दफा ८३४ देवताका मालिकाना हक्क मन्दिरकी जायदादपर मन्दिरके देवताका मालिकाना हक़ माना जाता है; देखो - 8 Bom. 432; 6 C. W. N. 178;5 Bom. L. R932; 13 M. I. A. 270, 13 W. R. P. C. 18-19; हिन्दुओंका प्राचीन सिद्धांत है कि जब मन्दिरमें कोई देवता शास्त्रोक्त विधिपूर्वक प्रतिष्ठित किया जाता है तो वह मन्दिर उस देवताका निवास स्थान बन जाता है । वह देवता केवल अपनी प्रतिमामें ही नहीं रहता बल्कि सम्पूर्ण मन्दिर में उसका निवास माना जाता है, उस देवताकी प्रतिष्ठा और मर्यादा रखने के लिये मन्दिर सम्बन्धी संपूर्ण इमारत में भक्ति और श्रद्धा के साथ सब धर्म कार्य किये जाते हैं मानों वह मन्दिर उस देवताके रहनेका घर है इसीलिये उसे 'देवालय' कहते हैं । देवालयमें थूकना, उसे अपवित्र करना, या उसे तोड़ना फोड़ना या ऐसे कोई काम करना जो उस स्थानमें न करना चाहिये इत्यादि कामशास्त्रों में वर्जित किये गये हैं और ऐसा करने वाले पापके भागी माने गए हैं इसीलिए जीर्णोद्धार कराने में बड़ा पुण्य माना गया है यह सब बातें इसी लक्ष्यपर हैं कि उसमें देवताका बास रहता है । देवता अव्यक्त शक्ति है इसीलिये वह किसी मुक़दमे में, मुद्दई या मुद्दालेह नहीं बनाया जासकता यह सब काम मन्दिरके प्रबन्धके नामसे होते हैं, देखो - 28 Mad. 319; 34I A. 78; 31 Mad. 138; 11 C. W. N. 442; 24 Bom. 45. शिवायतको एक वसीयत लिखी गयी कि जबतक दूसरी ठाकुर बाड़ी का प्रवन्ध करके ऊपर बताए अनुसार यह अर्पण न कर दी जाय तब तक श्री ठाकुर जी उस स्थान से हटाये न जावेंगे और ऐसा होनेपर श्री ठाकुर जी की स्थापना उसमें कर दी जावेगी और फिर किसी तरह वह मूर्ति दूसरे स्थानको नहटाई जावेगी । तय हुआ कि यह प्रवन्ध उस देवमूर्ति की इच्छा समझा जावेगा जो इच्छा संरक्षक के द्वारा प्रकट हुई है और उसके अनुसार कार्रवाई की जावेगी । पूजा करने सम्बन्धी अधिकारों का बटवारा नहीं हो सकता, देखो- - अमरनाथ मलिक बनाम प्रद्युम्न कुमार मलिक 1924 AIR. Pri. जायदाद इस प्रकार समर्पित की जा सकती है, कि उसका अधिकार मूर्तिके हक़में ही हो - इस सूरतमें किसी ट्रस्टीकी ज़रूरत नहीं होती - एडमिनिस्ट्रेटर जनरल आफ बङ्गाल बनाम बालकृष्ण मिश्रा 84 I. C. 91; A, I. R. 1925 Cal. 140. मन्दिर बनाना ज़रूरी नहीं है- एक देवता के नामसे एक गांव खरीदश गया और उस गांव की आमदनी देवता की पूजा और धार्मिक कामों में लाई गयी । देवता की मूर्ति घर में रखी रही वह किसी मंदिर में स्थापित नहीं की गयी थी । मुक़द्दमा दायर होने की तारीखपर मालूम हुआ कि मंदिर बनाने
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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