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________________ १६४ दान और मृत्युपत्र [सोलहवां प्रकरण रह नहीं होता" उस दफा के अनुसार किसी वसीयत करने वाले को यह अधिकार नहीं है कि वसीयत द्वारा किसी को कोई ऐसी जायदाद दे जिसका इन्तकाल वह अपनी ज़िन्दगीमें नहीं कर सकता था या किसी ऐसे आदमी को भरण-पोषणके हक़से बंचित करे जिसे वह वसीयत द्वारा बंचित नहीं कर सकता था। उस दफामें कही हुई कोई बात दत्तक विधानसे या लावा. रिसोंकी वरासतके कानूनसे लागू नहीं होगी और उस दफा की किसी बात से किसी हिन्दू, जैन, सिख या बौद्ध को यह अधिकार प्राप्त होगा कि वह किसी जायदादमें किसीका ऐसा हक़ पैदा करे जो वह तारीख १ सितम्बर सन् १८७० ई० अर्थात् हिन्दू बिल्स् एक्टके पास होनेसे पहले नहीं कर सकता था। दफा ८११ वसीयत मुश्तरका ख़ानदानके मेम्बरको हिन्दू मुश्तरका खानदानमें सरवाइवर शिप् (देखो दफा ५५८ ) का हक होता है यदि ऐसे खानदानके किसी मेम्बरको वसीयतके द्वारा जायदाद दी जाय तो प्रश्न यह उठता है कि वे उसे क़ाबिज़ शरीक या क़ाबिज़ मुश्तरक ( Tenants in common of joint tenant देखो दफा ५५८) तरीकोंमें से कौन तरीकेसे लेते हैं । इस बातका वास्तव में निर्णय वसीयतकी लिखत और दूसरी बातोंसे होता है । नीचे इस किस्म के कुछ फैसले उदाहरणार्थ देखो (१) एक हिन्दूने वसीयत किया कि मेरी जायदाद मेरी छोटी विधवा और उसके पुत्रको मिले और दोनोंको उस जायदादके बेचने, रेहन करने या इनाम आदिमें देने का अधिकार प्राप्त होगा । देखो यहांपर दोनों जायदादपर काविज़ शरीक (Tinants in common दफा ५५८) हैं । प्रत्येक अपने आधे हिस्सेका मालिक हो गया इसलिये उन दोनोंके मरनेपर उनका हिस्सा उनके वारिसोंको मिलेगा, यानी विधवा के मरने पर उसके वारिस को और पुत्र के मरनेपर उसके वारिस को, देखो-23 Cal. 670; 23 I. A. 44. (२) एक हिन्दुने बिना हिस्सा बताये अपनी दो विवाहिता बेटियोंके नाम जायदाद वसीयत की ऐसे मामले में दोनों बेटियां काबिज़ मुश्तरक (Joint tenants दफा ५५८ ) सरवाईवर शिप् के हक़के अनुसार जायदाद लेंगी; देखो - गोपी बनाम जलधर 33 All. 41. (३) एक हिन्दूने दान पत्र लिखा जिसके द्वारा मुश्तरका खानदानमें रहने वाले दो भाइयोंको अपनी जायदाद देदी दोनों भाई इस जायदाद पर क़ाबिज शरीक ( Tenants in common दफा ५५८) तरीकेसे काबिज होंगे तथा उनके मरने के बाद उनके पारिलोको जायदाद पहुंचेगी देखो -वाई दिवाली बनाम पटेलविवारदास 26130m.4455 33 Ail.665; इसके विरुद्ध भी देखो एक हिन्दू बापने अपने तीन पुत्रोंके नाम वसीयत किया कि अमुक मकान
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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