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________________ भविसयत्तकहाए अण्णण्णई वावारइं दावइ मत्तगइंदु णिरंकुसु णावइ । जिम जिम ताहि आस णउ पूरइ तिम तिम पणइणि हियइ विसूरह । विरुवउ माइ अंगि बरइत्तहो गुरुवयणइम्मि ण लग्गहि चित्तहो । एव्वहिं एण समउ ण चविजइ जं किउ तं जि पडीवउ किजइ । घत्ता । थिय माणगइंदि समारुहिवि अवमाणिं परिचत्तरइ । पिय वयणि मयणि आसणि सयणिरइवासहरिवि णउ मिलइ ॥ ६॥ तं पणइणिहि पणउ न समप्पइ पिम्मुम्माएं मणु संतप्पइ। अंगई विरहदाहु ण सहंति णयणइं जित्थु णाहु तहिं जंति । वयणु वलेइ मग्गु पिय जंतए किम णिव्वहइ माणु रुचंतिए। अन्नदियहि पुणु पुणु बोल्लावइ णाह णिरारिउ मणु संतावइ । जे विणु पुणुवि पुणुवि न वलिजइ तिसहुं दीहकसाउ ण किजइ । एम भणंति जाम कर पेसइ ताम दुरक्खरवयणई भासइ। ऊसरु ऊसरु मं करि लग्गहि पियहरि गंपि णिवासउ मग्गहि । काई किलेसहि कार्ड अयाणिए किं घिउ होइ विरोलिएँ पाणिए । घत्ता । तो वुच्चइ अहरु फुरंतियई णिवसंतिहि तउतणइं घरि । उप्पाइय केणवि भंति पहु जा सा कहि मं हियइधरि॥७॥ तुहं पुरवरहो सव्वसाहारणु जाणहिं कज्जाकजवियारणु। णवर णिरारिउ विप्पियगारउ सुहियउ होइ संगु तुम्हारउ । सेविजंति विचित्तसणेहउ मंच्छुड तुहुं जिणे जम्मिवि एहउ । तो वरइत्तिं वुत्तु अवंकउ को सक्कइ तउ करिवि कलंकउ । हउं मि णाहि तउ विप्पियगारउ जाणहिं तुहं जि संगु अम्हारउ । णवर ण जाणमि काइंमि कारणु जाउ असत्यपियम्मनिवारणु। के कतिपइं मणि ण कलंकमि खणमित्तवि देवणहं न सक्कमि । मंडवलंति णियंतहो णयणइं अणरामै करंति तव वयणइ । घत्ता । अच्छंतु ताम पियविप्पियई एकंगणिवि म रइ करहि । परियाणिवि एही कजगई जं जाणहिं तं मणि धरहि ॥ ८॥ १ B एवहिं २ B पिय वयण मयण आसण सयण ३ B जेथु ४ B अण्णहिं दियहिं पुणुवि बुल्लावइ ५ B तेसिहं ६ B कीउं ७ B विरोले ८ B सेविजंतु ९ B जिणधम्मि १० B केमई ११ B खणमेत्तु १२ अणरायउ
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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