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________________ अमो सन्धी । साहसधीरु महाववसायउ अतुलु महाधणु विढविवि आयउ । पइसइ सुहडविंदपरियरियउ वीरचरीउ महियलि अवयरियउ । एम नयरनायरिहु चवंतिहु नियनियघरि मंजरिउ भमंतिहु । बंधुयत्तु वरभवणि पइट्ठउ उक्कंठियउ जणेरहिं दिउ । घत्ता | आनंदसमागमगब्भियई संभासणवयणई थंभियई । सहसत्ति न सक्किउ जोयणिहिं हरिसंसुगलत्थियलोयणिहिं ॥ ४॥ कयपणवाउ निविठु वरासणि दिन्न दिट्ठि सुहिसयसं भासणि । वहु अवइन्न पुरउ जंपाणहो नं परमेसरि सिवियाजाणहो । ढुक्कउ वरजुवइउ चउपासिहिं पढमसमागमकमविन्नासिहिं । निडसमिद्धसमप्पियवयणिहिं चवलतारतरलावियनयणिहिं । वरभालयलपसाहियतिलयहिं पासि सरूअहिं नियवरविलयहिं । fare करेवि वि आसण्णए एह तउ सासु पदसिय सन्नई । थिय तहितरं वयणु अवलोइवि पच्चासन्नु जुवइजणु जोइवि । नउ पणवाउ करइ नउ जंपइ हियइ अणेयर वाय वियप्पर । धत्ता । तो बहुमंगलसंगिच्छइणई चंदणचउक्कनिम्मच्छणई । दरिसिवि मुहं जोइउ नंदणहो नउ नवइ न जंपइ काई वहु ॥ ५ ॥ जणणिहिं वयणु सुणेवि अणुज्जें सण्णिउ नियपरिवारु अलज्जें । नेहु ताम इक्कतपएसहो अज्जवि मणि संभरइ सएसहो । तो लंजियगणेण ओसारिय लहु इक्कंतभवणि बइसारिय । परिवेढिय वरतियहिं सुवेसहिं मणिकंचीकलावनिग्घोसहिं । संथुअ वरविलयहिं तुहुं धन्नी जा वरभवणि इत्थु उप्पन्नी । अंगणगणहो समुन्नयमाणी सुहु भुंजहि गयउरहो पहाणी । अज्जवि किं संभरहि सएसहो अंगु समोडहि मयणावेसहो । लुहि लोयण माणु अवहारहि वत्थाहरणसोहसिंगारहि । घत्ता । निसुणंतिवि तं भविसाणुमइ नियपइविओयसंतत्तमइ । अवगन्नई पियसं भासणई जिणभावण जेम कुसासणई ॥ ६ ॥ अवगणियउं ताम वरवेसउ कियड अणुत्तरवयणविसेसउ । वियसिवि कुलजुवइउ आहल्लउ नवजोव्वणगुणरूवमहल्लउ । दंसणु कोहलपियइत्तिउ सजलसमुज्जलविज्जुलकंतिउ । कावि णिय तरलावियनयणिहिं कावि चवइ पियवयणुल्लाविहिं । ५५
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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