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________________ भविसयत्तकहाए तक्खणि सो पइड वद्धावउ अक्खिउ सयलहं वयणु सुहावउ । पणवइ बंधुयत्तु अणुराइउ जउणानइहिं तीरि संपाइउ । धाइउ सयलु लोउ विहडप्फडु केण वि कहोवि लइउ सिरि कप्पडु । केण वि कहो वि छुड्डु करि कंकणु केण वि कहो वि दिन्नु आलिंगणु। केण वि कहो वि अंगु पडिबिंबिउ केण वि कहो वि लेवि सिरि चुंबिउ। घत्ता । गयवइयहिं कम्मइं मिल्लियई नयणई हरिसंसुजलोल्लियई। पियकुसलाकुसलु करंतियई चित्तई संदेहविडंबियइं ॥१॥ वणिवइ अंसुजलोल्लियनयणउं पुच्छइ पुणु वि सगग्गिरवयणउं । अहो किं सच्चु एउ पई जंपिउ किंपि वियारहि करहि मुहप्पिउ । पभणई वत्तयारु मं मुज्झहिं आयउ बंधुयत्तु फुड्ड बुज्झहि । मई मिल्लिउ परिहैत्थु वहंतउ जउणानइपवाहु लंघंतउ । वह तउ नंदणहो पयाणउं पहुखंधारहो अणुहरमाणउं । धर दलंतु तुक्खारतुरंगिहिं पडिपिल्लंतु मत्तमायंगहिं। वहइ सिमिरु सहएसाकंखिहि करहवसहवाहणहिं असंखहिं । ता दिहि दिंतु सयलुसुहिविंदहो सिट्टि पराइउ पासि नरिंदहो । पत्ता । जाणाविउ पुत्तहो आगमणु पहु पभणई हरिसुप्फुल्लतणु। लइ चंगउ जायउ पउरयणि थिउ सयलु वि जणु सविसन्नु मणि ॥२॥ एत्थंतरि जाणिवि सुपयत्तें कमलहिं कहिउ गपि हरियत्तें। परिहरि पुत्ति सोउ संतावउ आयउ सिट्ठिहि घरि वद्धावउ । जाणाविउ अत्थाणि परिंदहो खेउ कुसलु सव्वहो जणविंदहो। तं निसुणेवि सावि परिओसिय जाय उच्चरोमंचविहूसिय । पणि आवणसोह कराविय तोरणि मंगलकलस धराविय । अहिमुहं सयलु लोउ संचल्लिउ पउरु सपिंडवासु उत्थल्लिउ । दिहु विंदु रहसेण पधाइय अवरुप्परु आवीलिय साइय। सुयणहिं अंसुजलोल्लियनयणिहिं पुच्छिउ कुसल सुहासियवयणिहिं । झल्लरिपडहसंखनिग्धोसिं पद्दणि पइसरंति परिओसिं । घत्ता । धणकणयरयणकामिणिपउरि सो बंधुयत्तु पइसंतु पुरि । बहुकोऊहलपिल्लियमणिण अवलोइउ नायरियायणिण ॥३॥ तं पिक्खिवि पइसंतु निरंतरु नायरीउ बोल्लंति परुप्परु । सहियरि एहु सुसिटिहि नंदणु पुत्तु सरूवहिं नयणाणंदणु । १ A जुज्झहि २ B इत्यु
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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