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________________ भविसयत्तकहाए महसइहिं दडत्ति हियउ पडिउ छुड्ड गहिरमहासमुद्दि चडिउ ॥५॥ वहणसमूहु निएवि जलि जंतउ भविसयत्तु रुणुरुणइं महंतउ । काई करमि जं छलिउ अणिटिं वंचिउ पुणु वि तेण पाविहिं । विहल जाउ जं चिरु परिचिंतिउ पुणरवि दुक्ख महन्न विधितिउ । तं सहएसगमणु नउ साहिउ जणणिहितणउं वयणु नउ चाहिउ । गयउरि बंधुयत्तु पइसंतए धणवइघरि सोहलयमहंतए । महु आगमणवयणु अलहंती उम्माहउ रणरणउं वहंती। हयदाइयदुव्वयणभवित्तिए एव्वहिं मरइ माइ विणु अंतिए । घत्ता । हउं वंचिउ बंधुयत्तुचरिउ चंगउ पिसुणत्तणु वावरिउ । खलखुद्दपिसुण विवरीयविहि पूरंतु मणोरह होउ दिहि ॥६॥ अण्णु वि आसि महादिहिगारउ पियकलत्तु पाणहमि पियारउ । न मुणहं तहिमि कावि गइ होसह अह जं जेण गहिय तं तासइ। मई वंचिवि जो पोयई पिल्लइ सो अवसाणि सावि किं मिला। इच्छइ जइ वि नाहि तो फिइ दिढसीलहो बलेण जइ छुट्टइ। एम सुइरु सुवियप्पु करंतउ पुणु पुणु पियमुहकमलु सरंतउ । थिउ जोयंतु ताम जलवम्मई जाम हुअई नयणहमि अगम्मई। पियमुहसुहदंसणु अलहंतउ विरहविसमवेयण असहंतउ । qण्णउं रुलुघुलंतु परिसक्किवि दसवि करंगुलीउ मैसरकिवि । चलिउ पुणु वि सविलक्खहिं पायहिं तरु पहणंतु सिढिलकसघायहिं । जहिं से पिएण आसि कीलंतउ तं लयभवणु पुणु वि संपत्तउ। घत्ता । वणि रमियई भमियई कीलियई सुमरंतु सणेहुप्पीलियई। तरुपक्खिरुअहंमि जणंतु भउ लयमंडवि मुच्छाविहलु गउ ॥७॥ दसहपियविओयसंतत्तउ मुच्छई पत्तउ। सीयलमारुएण वणि वाइउ तणु अप्पाइउ । करयलि नायमुद्द संजोइवि पुणु पुणु जोइवि । तेण पहेण पुणु वि संचल्लिउ विरहिं सल्लिउ । पत्तु परिब्भमंतु दुक्खाउरु तं जि महापुरु। पुणरवि तें पएसें परिसक्का कहिंमि न थक्का । १ A विधित्तउ २ B रुण्णउं ३ B समडकिवि ४ B सह
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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