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________________ सत्तमो सन्धी। लइय पवण धयवड संफालिय कंडवइहिं जलमग्ग निहालिय। दिन्न तूर उग्घोसिउ कलयलु छुड छुड्डु हल्लोहलिउ महाजलु । तो भविसाणुरूव गमसंकुल नियकरु जोइवि जाय समाउल । विहडप्फड वरइत्तहो अक्खइ सा थिय नायमुद्द तरुपक्खइ । चलिउ सो वि तं वयणु मुणेप्पिणु गउ विजाहरकरणु करेप्पिणु । आवइ जाम ताम जलवम्मइं हुअई सलिलि अत्थाहि अगम्मई। घत्ता । पिक्खेविणु चलई पओहणइं कर उन्भेवि धाहाविउ धणई। अहो तुम्हई कहिं संचलिय लहु सो पच्छइ जो भंडारपहु ॥ ३ ॥ तं निसुणिवि खुहियई वणिउत्तई पडिउ सङ धरियई जलजंतई । उब्भिय कर पुरलोउ वियंभिउ अहो इउ पुणु वि काइ पारंभिउ । अजवि भविसयत्तु तडि अच्छइ किर संचलिय तुम्हि कहु पच्छइ। कल्लई भरिय गरुयसम्माणहो कजाकज्जु किन्न परियाणहो। तं निमुणेवि सरूवहि पुत्तिं वुच्चइ दुन्नयदोसनिउत्तिं । चंगउँ धम्मु तुम्हि वक्खाणिउं अह परमत्थवियारु न जाणिउं । पइ मिल्लिवि जा लग्गइ जारहो सा फिइ नियपरघरवारहो। मई धणु देवि वणिजिं आणिय एवहिं तेण तुम्हि सम्माणिय । सो सियवंतु भणिवि अणुमन्नहो मई पर खीणविहउ अवगन्नहो । वरकुलधम्मु होइ जइ एहउ तो किर सामिदोहु सो केहउ । घत्ता । पल्लटहु लेवि पओहणइं वणि मिल्लहु कहिंमि जियंतु मई। भविसत्तु नेहु धणवइभवणि जिं होइ महग्घिम तुम्ह जणि ॥ ४॥ जाणमि होई जेम जं जेहउ पर विहिवलणु परिहिउ एहउ । जा नीसरइ कुलंगणगेहहो सा परियण उत्तरइ सणेहहो । एक्कवार जो चडिउ कलंकइ जम्मु वि तासु लोउ आसंकइ । तइयहं हर्ष कुलमग्गहो चुक्कउ जइयहं भविसयत्तु वणि मुक्कउ । एवहिं जं सुअणत्तणु किन्जइ तं पर अप्पाणउं वंचिजइ । एहु अहियववसायसइत्तउ सुहिउ होइ किं पुरि पइसंतउ । जणि अप्पणु पयाउ पयडावइ अम्हहं अवसु कलंकु चडावइ। तो वरि वणि मिल्लिउ सुहु जम्मि मरउ जियउ अप्पणइं सकम्मि । घत्ता । वणिउत्तहं तो अवहेरि किय लइ चलहु चलहु घोसण भमिय । १B हमि
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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