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________________ ___छट्ठो सन्धी। सुव्वयवयणेहिं तववयनियमगुणन्नइय। तं निसुणहुँ जेम कमलई सुवपंचमि लइय॥ अच्छउं ताम एउ अक्खाणउं दीवंतरि भविसत्तकहाणउं । कह संचरिय विचित्तपया सिरिंगयउरि जहिं सा कमलमहासिरि । अच्छइ दुक्खमहण्णविखित्ती सुअविओइजालोलिपलित्ती। आसणु सयणु वयणु नउ भावइ सिढिलवलय वायसु उड्डावइ । . रडि वायस जइ किंपि वियाणहिं भविसयत्तु महु पंगणि आणहिं । किं कइयहमि दिवसु तं होसइ जहि सो सरहसु साइउ देसइ । दुक्कर एम एउ पियसंगउ एवहिं खलविहि विनडइ अंगउ । गयउरि सव्वउ तियउ सउन्नउं नियभत्तारपुत्तपरिपुन्न। कावि न मई जेही दुहभायण सुहिसयणहं बहुदुक्खुप्पायण । एम रुअंति सरीरु किलेसइ वयनियमहिं उववासहिं सोसइ । घत्ता । विहि विनडहि काई केणवि किउ अब्भुद्धरणु । अह मेलहि पुत्तु अह संखेविं दइ मरणु ॥ १॥ एत्थंतरि अजियगणसारी सुव्वय नाउं महव्वयधारी । तह वच्छल्लु करइ सा सेवय नं पचक्खमहासुयदेवय । हे कमलसिरि पुत्ति मं सोअहि जिणवयणामय मणु संजोयहिं । किं सुहिसयणवयणु अवगन्नहिं चंचलजीव लोइं रइ मन्नहिं । सुहदुक्खई कयधम्माहम्मि जीवहो होंति पुराइयकम्मि। मं छुडु पई दुहकम्मपरंपरि असुहु किंपि किउ अन्नभवंतरि । किमि दुहकम्मपयडि संजोइय ति पइपुत्तमुहिण विच्छोइय । कहु घरु कहु परियणु कहु बंधउ मं तुहुं करि असगाहिं धंधउ । अजवि एम गइवि तं भावहि जेण महंतमहादिहि पावहि । घत्ता । गुरु पुच्छिवि पुत्ति सुअपंचमि तिविहेण लइ। जिं पुणु न कयावि इट्टविओउ न संभवइ ॥२॥ तं निसुणेवि भणई ससिवयणी मुक्काहरणपरम्मुहवयणी । कमलई वुत्तु महावयधारिए सुअपंचमि किम लेमि भडारिए । सुव्वय कहइ सुणंतहं सव्वहो पढमागमि नंदीसरपव्वहो । अह कत्तिए अह फग्गुणि आवइ अह असाढमासे संपावइ । १B गुणुण्णयइ २ B सायउ दोसइ
SR No.032126
Book TitleBhavisayatta Kaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKavi Dhanpal, C D Dalal
PublisherBaroda Central Library
Publication Year1923
Total Pages402
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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