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पंचमो सन्धी
पंक सिरिओ वि गयउ खेरिहि अणइच्छंतिहिं मंडजणेरिहिं । निग्गड सोवि बेवि समहाइय गिरिमयणायरदीवि संपाइय | सो तहिं तेण पुव्ववरोहिं जणणिहिं तणहं सवत्तिविरोहिं । दुट्ठि दाइयमच्छरु मन्निवि धल्लिउ पंचवि सय अवगन्निवि । तित्थु रन्नि अविसन्नु भमेष्पिणु अइमुत्तयमंडवि निसि नेष्पिणु । धत्ता । गिरिविवरि पट्टु तं पइसंतु जाम सरइ ।
धणकणयसमिडु तिलयमहापुरि पइसरइ ॥ ४ ॥ तं पट्टणु परिभमि रवन्नउं अन्नपसत्तु कलत्तु सुवन्नडं । चंदप्पहजिणभवणि पवन्नउं अच्छइ आसणपट्टि निसन्नउं । एवहिं वरतियरयणु लहेसह अन्नु वि कहिउ जेम जं होसह । तं परमत्थु तेण मन्त्रेष्पिणु मुणिवरपयपंकयां नवेष्पिणु । गउ सुरवइ तं दीउ रवन्नउं दिट्टु वीरु जिणभवणि निसन्नउं । भामरि देवि समउ आहासिवि चंदप्पह जिणबिंबु नर्मसिवि । सुहिण अंतु मिंतु पिक्खेविणु भित्तिहिं अक्खरपंति लिहेप्पिणु । पभणिउं माणिभद्दु जक्खेसरु एहु सुमित्त मज्झु जाईसरु । तुज्झु समपि3 मई निक्खेवउ सहुं कंतई महं समु पिक्खिव्वउ | गरि दिrयरकर अरविंदहो पर मेलेब्वउ सजणविंदहो । घत्ता । गउ एम भणेवि अच्चुअसग्गसुराहिवई ।
frउ होइ पसन्न माणिभद्दु जक्खाहिवई ॥ ५ ॥
भवि वि उज्झिवि जाम पलोअइ लीलई पुरउ भित्ति अवलोय | अक्खरपंति जाम परिभावइ ताम निरारिउ हियइ सुहावइ । उठ वयणपवाहु रवन्नडं अहो भविसत्त काई थिउ बुन्न । जिणहरपुत्र्वदिस संपुन्नजं जं पंचमउं गेहु सोवन्नउं । तहिं अच्छइ कुमारि सुमणोहर कक्कसपीणुत्तुंगपओहर | लडहरमणि नियकुलसोवासिणि सा तउतणिय धणिय पियभासिणि । उहि जाहि ठाहि किं सेरउ एउ पट्टणु असेसु तउकेरउ । तं वायंतु करइ साहारणु एउ न जाणहं काइंमि कारणु । धत्ता | मुहिं करयलु देवि परिचितइ विभयभरिउ ।
इकाई विहाणु अउ असंभउ अच्छरिउ ॥ ६ ॥ १ B पंचसय २ B ताम
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