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________________ होगी। ऐसा जीवन का विरोधाभास से भरा हुआ स्वर्ण नियम है। तुम सुरक्षा खोजो, तुम असुरक्षित होते जाओगे। तम प्रेम खोजो, और तम विषाद से भरते जाओगे। फिर क्या करें? मैं कहता हं.अस है। जीवन का सत्य है। सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता। तुम्हारी वांछाओं से थोड़े ही सत्य चलता है, जैसा है वैसा रहेगा। तुम लाख कहो कि ये वृक्ष के पत्ते पीले हो जायें, हरे न हों, सफेद हो जायें काले हो जायें। कौन सुनने वाला है भू: ये वृक्ष के पत्ते हरे हैं। तुम ये सारे पत्ते काट डालो, फिर नये पत्ते निकलेंगे, फिर हरे निकलेंगे। क्योंकि वृक्ष के पत्ते तुम्हारी आकांक्षाओं से संचालित नहीं होते। वृक्ष के पत्ते किसी महानियम को मानकर चलते हैं, जहां से वे सदा हरे निकलते हैं। जो पैदा हुआ वह मरेगा| जो जवान है वह कल बूढ़ा होगा। जो आज अकड़ा है, कल टूटेगा। जो आज आकाश छू रहा है, कल कब्र में गिरेगा। यह होनेवाला है। इसे बदलने का कोई उपाय नहीं है। तुम असंभव को मांगो मत। बस, जैसे ही तुमने इसे स्वीकार कर लिया, फिर मैं तुमसे पूछता हूं? कहां है असुरक्षा? अब यह बड़े मजे की बात है। सुरक्षा को खोजो, असुरक्षा निर्मित होती है। क्योंकि जितनी तुम सुरक्षा की मांग करते हो उतनी घबड़ाहट बढ़ती है। और उतना ही तुम्हें दिखाई पड़ता है कि सुरक्षा होनेवाली नहीं, असुरक्षा हो रही है। तो असुरक्षा बड़ी होती चली जाती है। तुम्हारी सुरक्षा के अनुपात में ही तुम्हारी सुरक्षा की आकांक्षा का जो अनुपात है उसी अनुपात में असुरक्षा बड़ी होकर दिखाई पड़ने लगती है तुम्हें अपनी हार दिखाई पड़ने लगती है। तुम्हें लगता है कि जीत न पायेंगे, हार निश्चित है। मैं तुमसे कह रहा हूं,तुम जान लो कि असुरक्षा तो है ही जीवन का स्वभाव और सुरक्षा की चेष्टा छोड़ दो। जब सुरक्षा की कोई आकांक्षा ही न रही तो फिर कैसी असुरक्षा? असुरक्षा को कैसे तौलोगे? सुरक्षा की मांग अड़चन डालती है। जिस आदमी के जीवन में धन की वासना न रही वह क्या गरीब हो सकता है? कैसे होगा? धन की वासना के बिना गरीब होने का कोई उपाय ही न रहा। वह सम्राट हो गया। स्वामी राम ने कहा है, एक घर छोड़ा तो सारे घर मेरे हो गये। एक आयन क्या छोड़ा, सारा आकाश मेरा आंगन हो गया। जब तक कुछ मेरे पास था, मैं दरिद्र था। अब कुछ भी मेरे पास नहीं है और मैं सम्राट हूं। ऐसी ही है बात। जिनके पास कुछ है वे दरिद्र हैं। 'कुछ' में तो दरिद्रता है ही। फिर वह कुछ किसी के पास थोड़ा है, किसी के पास ज्यादा है। किसी के पास दो गज जमीन है, किसी के पास हजार गज जमीन है, किसी के पास हजारों मील की जमीन है, लेकिन कुछ तो कुछ ही है। थोड़ा हो कि बड़ा हो, दरिद्रता तो दरिद्रता है। मात्रा के भेद से क्या फर्क पड़ेगा? तुम्हारे सम्राट भी तो दीन-हीन भिखारी हैं, जैसे तुम हो। अंतर कुछ बहुत नहीं है। उनके भिक्षापात्र बड़े होंगे, तुम्हारे भिक्षापात्र छोटे हैं, बस इतना ही फर्क है। भिक्षापात्र के बड़े होने से कोई सम्राट होता है? नहीं, सम्राट तो वही है जिसने भिक्षापात्र ही हटा दिया। जिसने कहा कि जीवन जैसा है उससे अन्यथा की हमारी कोई मांग नहीं। हम सुरक्षा मलते नहीं। असुरक्षा है तो असुरक्षा स्वीकार। असुरक्षा
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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