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________________ सकता। फिर बार -बार तुम खिंचे किसी अदृश्य जादू में उसी केंद्र की तरफ चलने लगोगे । लेकिन यह होगा स्फुरणा से, यह चेष्टा से नहीं होगा । तुम देखो, जीवन में जब भी आनंद घटता है, स्फुरणा से घटता है। और जीवन में जब भी आनंद घटता है तो तुम सीधी चेष्टा करो तो कभी नहीं घटता। कोई आदमी तैरने जाता है और बड़ा सुख अनुभव करता है। तुम उससे पूछो, तैरने में सुख आता है, मैं भी आऊं? मैं भी तैरूं? मुझे भी सुख मिलेगा ? मुश्किल । शायद तुम्हें नहीं मिलेगा। क्योंकि तुम पहले से योजना बनाकर जाओगे कि सुख मिले। तुम तैरोगे कम, बार-बार कनखियों से देखोगे कि अभी तक सुख मिला नहीं। बीच-बीच सोचने लगोगे, अभी तक नहीं मिला, कब मिलेगा? तो तुम चूक जाओगे। वह जो आदमी तैरने जाता है उसे सुख इसलिए मिलता है कि वह सुख की तलाश में गया ही नहीं। वह तो तैरने गया है। उसकी नजर तो तैरने में लगी है। वह तो तैरने में डूब जाता है। जब तैरने में डुबकी लग जाती है, जब तैरने में पूरा खो जाता है, भावविभोर हो जाता है, बस सुख का झरोखा खुल जाता है। वह स्फुरणा से होता है। इसलिए अक्सर ऐसा होगा, मुझे सुननेवाला किसी मित्र को कभी ले आयेगा तुम आओ। तुम एक दफा तो आओ। वह सोचता है, जो मुझे हो रहा है वही मित्र को भी हो जायेगा। जरूरी नहीं आवश्यक नहीं। क्योंकि मित्र आयेगा कि चलो देखें क्या होता है। शायद तुम्हारी भावदशा को देखकर लोभ से भर आये कि जो तुम्हें होता है वही मुझे भी हो जाये। नहीं होगा । एक मित्र ध्यान करने आये। किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं, होशियार आदमी हैं। इस दुनिया में होशियार बुरी तरह चूकते हैं। कभी- कभी पागल पा लेते हैं और होशियार चूक जाते हैं। यह दुनिया बड़ी अनूठी है। उन्होंने तीन दिन ध्यान किया, चौथे दिन मुझे आकर कहा कि लोगों को तो होता है। कुछ हो रहा है। इसको मैं देख सकता हूं। मुझे कुछ भी नहीं हो रहा है। और मैं बड़ी आकांक्षा से आया हूं कि कुछ हो। महीनों से प्रतीक्षा की थी इन दिनों की । अब छुट्टी मिली है तो आया हूं। और कुछ हो नहीं रहा है। और मैं यह भी मानता हूं कि कुछ हो रहा है लोगों को कुछ हो रहा है। किसी को मैं रोते देखता तो मेरे प्राण कैंप जाते हैं कि मुझे कब होगा? किसी को आनंद से नाचते देखता हूं तो मैं भी सोचता हूं कि कब भाग्य के द्वार खुलेंगे मैं भी नाचूंगा? मगर मेरे पैरों में कोई पुलक ही नहीं आती। मैं बीच-बीच में दूसरों को भी देख लेता हूं कि देखो हो रहा है किसी को नहीं! लेकिन हो रहा है। और मुझे नहीं हो रहा। बात क्या है? कोई मेरे पाप आड़े पड़ रहे हैं? कोई मैंने बुरे कर्म किये हैं? आदमी कोई न कोई तर्क खोजता है अपने को समझाने को। मैं तुमसे कहता हूं न तो कोई पाप आड़े आते हैं, न कोई कर्म आड़े आते हैं। एक ही बात आड़े आती है, वह बात है कि तुम बहुत आतुरता से अगर लोभ से भर गये और तुमने योजना बना ली कि सुख लेकर रहेंगे-बस मुश्किल हो गई। मैंने उनसे कहा, तुम ऐसा करो, यह सुख का भाव छोड़ दो। यह समाधि का भाव छोड़ दो। तुम मेरी मानो। इतनी मेरी मानो कि तुम यह भाव मत रखो। तुम नाचो, गाओ, ध्यान करो। तुम थोड़े
SR No.032114
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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